नीरज गोस्वामी
बाद
मुद्दत के वो मिला है मुझे
डर
जुदाई का फिर लगा है मुझे
आ
गया हूँ मैं दस्तरस में तेरी
अपने
अंजाम का पता है मुझे
दस्तरस
= हाथों की पहुँच में
क्या
करूँ ये कभी नहीं कहता
जो
करूँ उसपे टोकता है मुझे
तुझसे
मिलके मैं जब से आया हूँ
हर
कोई मुड़ के देखता है मुझे
अब
तलक कुछ वरक़ ही पलटे हैं
तुझको
जी भर के बांचना हैं मुझे
ठोकरें
जब कभी मैं खाता हूँ
कौन
है वो जो थामता है मुझे
सोचता
हूँ ये सोच कर मैं उसे
वो
भी ऐसे ही सोचता है मुझे
मैं
तुझे किस तरह बयान करूँ
ये
करिश्मा तो सीखना है मुझे
नींद
में चल रहा था मैं ‘नीरज’
तूने
आकर जगा दिया है मुझे
नीरज
गोस्वामी
बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
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