होने देते युद्ध क्या, कभी कृष्ण भगवान।
बात, बात
से मानते, अगर दुष्ट इन्सान।।
नहीं थोपना चाहिए, अपना
कहीं महत्व।
लाख हमारा हो कहीं, प्रेम और अपनत्व।।
होने देते युद्ध क्या, कभी कृष्ण भगवान।
बात, बात
से मानते, अगर दुष्ट इन्सान।।
नहीं थोपना चाहिए, अपना
कहीं महत्व।
लाख हमारा हो कहीं, प्रेम और अपनत्व।।
याति भीतिभयभीषणं वर्षं दर्पितमेव,
जनयेज्जनगणमङ्गलं ,नववर्षं हे
देव !
जनगणमनमंगल करे,हे भगवन् पच्चीस ।
राधे! राधे!राधिका, मोहन!मोहन! श्याम।
दोनों ही जपने लगे,अपना-अपना
नाम।।
एक दूसरे को जपें, निशिदिन, आठों
याम।
साधारण प्रेमी नहीं, हैं राधा-घनश्याम।।
आई है नव वर्ष की, नई नवेली भोर
।
खिड़की से दिल की मुझे, झाँक रहा
चितचोर ।।
पहुँची हो चौबीस में, लेखन से कुछ
ठेस ।
क्षमा ह्रदय से माँगता, उनसे आज रमेश ।।