सभी साहित्य रसिकों का
पुन: सादर अभिवादन और होली की शुभकामनाएँ
मन मलङ्ग, हुलसै हिया, दूर होंय दुख-दर्द|
सावन तिरिया झूमती, फागुन फडकै मर्द|
कहे सुने
का बुरा न मानो ये होली का महीना है
पर्वों
के गुलिस्तान "हिन्दुस्तान" में हर दिन कोई न कोई पर्व मनता ही रहता है| फिलहाल होली के पर्व ने माहौल को रंगीन बनाया हुआ है| पिछली बार की तरह इस बार भी होली के कुछ नये-पुराने रंगों [दोहे, कवित्त, सवैया, ग़ज़ल, नज़्म] के साथ आपके सामने उपस्थित हूँ|
नोक-झोङ्क भरी बातचीत – 1 [दोहे]
नायक:-
नीले, पीले, बेञ्जनी; हरे, गुलाबी लाल|
इन्द्र-धनुष के बाप हैं, गोरी तेरे गाल||
नायिका:-
रङ्गों की परवा’ न कर, देख दिलों दे हाल|
मैं भी लालम लाल हूँ, तू भी लालम लाल||
नायक:-
होली का त्यौहार है, कर न इसे बेरङ्ग|
साफ़ी को कस के पकड़, आ छनवा ले भङ्ग||
नायिका:-
होली के त्यौहार का, जमा हुआ है रङ्ग|
छन आएगी बाद में, घुट तो जाए भङ्ग||
नोक झोंक भरी बातचीत - २
नायक:-
गोरे गोरे गालन पे मलिहों गुलाल लाल,
कोरन में सजनी अबीर भर डारिहों|
सारी रँग दैहों सारी, मार पिचकारी,
प्यारी,
अङ्ग-अङ्ग रँग जाय, ऐसें पिचकारिहों|
अँगिया, चुनर, नीबी, सुपरि भिगोय डारों,
जो तू रूठ जैहै, हौलें-हौलें पुचकारिहों|
अब कें फगुनवा में कहें दैहों छाती ठोक,
राज़ी सों नहीं तौ जोरदारी कर डारिहों||
[घनाक्षरी]
नायिका [अ]:-
फूले फूले गाल मेरे पिचकाय डारे और
अङ्गन में रङ्गन की जङ्ग सी लगाय दई
अँगिया
कों छोड़ तू तौ सारी हू न रँग पायौ
अच्छे-खासे
जोबन की कुगत बनाय दई
बड़ी-बड़ी
बातें करीं, सपने दिखाये ढेर
शेर
जहाँ बिठानौ हो बकरी बिठाय दई
नेङ्क हाथ लगते ही फूट गयी पिचकारी
ख़ैर ही मनाय तेरी इज्ज़त बचाय दई
[घनाक्षरी]
नायिका [ब]:-
पिय गाल बजाबन बन्द करौ, अरु ढीली करौ
हठधर्म की डोरी
ढप-ढ़ोल-मृदङ्ग बजाए घने, झनकाउ अबै
हिय-झाँझर मोरी
अधरामृत रङ्गन सों लबरेज़ तकौ तौ कबू यै निगाह निगोरी
इक फाग की राह कहा तकनी, तुमें बारहों
मास खिलावहुं होरी
[सुन्दरी सवैया]
साँवरे ने होरी में बावरी सी कर डारी
नैनन सों बात कही चितचोर छलिया नें,
मुसकाय, उकसाय - बोल कें - सुकुमारी|
कमल-गुलाबन सी उपमा दईं तमाम,
माखन-मिसरी-मीठी-मादक-मनोहारी|
होरी कौ निमंत्रण पठायौ ललिता के संग,
खोर साँकरी गई इकल्ली, मो मती मारी|
देख कें अकेली मोय, प्रेम रंग में
डुबोय,
साँवरे ने होरी में बावरी सी कर डारी||
[कवित्त]
साँची ही सुनी है बीर महिमा महन्तन की
इत कूँ बसन्त बीत्यौ, उत कूँ बौरायौ
कन्त
सन्त भूल्यौ सन्तई कूँ मन्तर पढ्यौ भारी
पाय कें इकन्त मो सूँ बोल्यौ रति-कन्त कीट
खूब है गढ़न्त तेरे अङ्गन की हो प्यारी
तदनन्तर ह्वै गयौ मतिवन्त – रति वन्त
करि कें अनन्त यत्न बावरी कर डारी
साँची ही सुनी है बीर महिमा महन्तन की
साल भर ब्रह्मचारी, फागुन में लाचारी
[कवित्त]
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं
महीना पच्चीस दिन दूध-घी उड़ामें और
जाय कें अखाडें दण्ड-बैठक लगामें हैं|
मूछन पे ताव दै कें जङ्घन पे ताल दै कें
नुक्कड़-अथाँइन पे गाल हू बजामें हैं|
पिछले बरस बारौ बदलौ चुकामनौ है,
पूछ मत कैसी-कैसी योजना बनामें हैं|
लेकिन बिचारे बीर बरसाने पौंचते ही,
लट्ठ खाय गोरिन सों घर लौट आमें हैं||
[घनाक्षरी]
ग़ज़ल
सुस्त है कानून, कारिन्दे शरारत कर रहे हैं
सो रहा है आदमी बच्चे शरारत कर रहे हैं
कल अचानक नींद जो टूटी तो मैं क्या देखता हूँ
चाँद की शह पर कई तारे शरारत कर रहे हैं
वासता है आप को उस रात का अब आ भी जाओ
आज़ फिर उस रात के लमहे शरारत कर रहे हैं
ख़ुद ही बुलवाते हैं, और फिर पूछते
हैं आये क्यूँ
आप को हम ही मिले? हमसे शरारत कर रहे हैं
!!!
रस्सियाँ बल खा रही हैं उस का चर्चा तक नहीं है
शह्र भर में है ख़बर, खूँटे शरारत
कर रहे हैं
रङ्गो-ख़ुशबू के लिये ही आदमी सहता है काँटे
जानते हैं ये, तभी, साले - शरारत कर रहे हैं
नर्क वाले भी इन्हें घुसने नहिन देंगे नरक में
बच्चियों के साथ जो बुड्ढे शरारत कर रहे हैं
सारा जन-जीवन शरारत की इबादत कर रहा है
डालियाँ-भँवरे, हवा-पत्ते शरारत कर रहे हैं
कम नहीं हैं आप भी, पल में बदल देते
हैं सब कुछ
आप भी इन्सान से डट के शरारत कर रहे हैं
हमने हर मुश्किल को जब नज़दीक से देखा तो पाया
पायजामे चुस्त हैं, नाड़े शरारत कर
रहे हैं
कविता / नज़्म
[लाला लला ललाला X 2]
चूनर पे तक चकत्ता, इत्ता बड़ा गुलाबी
कहने लगीं सहेली, वो कौन था? गुलाबी
कैसे बताए सब को, थी सोच में गुलब्बो
नज़रें चुरा के बोली, कुछ लोच में
गुलब्बो
होली का पर्व है सो, पुतवा रही थी
घर को
मिस्टर ने थामी कूची, मैंने गहा कलर
को
दीवार पुत चुकी थी, दरवाज़ा रँग रहे
थे
ठीक उस के पीछे सखियो, कुछ वस्त्र टँग
रहे थे
मिस्टर तपाक बोले, इन को हटा दो खानम
मैंने कहा सुनो जी, तुम ही हटा दो
जानम
कुछ और तुम न समझो, मैं ही तुम्हें
बता दूँ
मैं समझी वो हटा दें, वो समझे मैं
हटा दूँ
दौनों खड़े रहे थे, जिद पे अड़े रहे थे
दौनों की जिद के चलते, कपड़े पड़े रहे
थे
आगे की बात भी अब, तुम सब को मैं बता दूँ
दौनों ने फिर ये सोचा, चल मैं ही अब
हटा दूँ
वाँ हाथ उठाया उन ने, इत मैं भी मुड़
चुकी थी
कब जाने सरकी चुनरी, शानों पे जो
रुकी थी
फिर जो बना है बानक, कैसे बताऊँ तुमको
शब्दों से सीन सारा, कैसे दिखाऊँ
तुमको
हेमन्त ने अचानक, बहका दिया था हमको
कुछ ग्रीष्म ने भी सखियो, दहका दिया था
हमको
बरसात की घटा ने, दिखलाया रङ्ग ऐसा
कुछ था वसन्त जैसा, और कुछ शरद के
जैसा
कर याद फिर शिशिर को, दौनों हुए शराबी
इस वास्ते चकत्ता - चूनर पे है गुलाबी
इस वास्ते चकत्ता - चूनर पे है गुलाबी
इस वास्ते चकत्ता - चूनर पे है गुलाबी
हजल [रेख़ती टच के साथ]
घड़ी में याँ ठुमकता है घड़ी में वाँ मटकता है
मेरा महबूब है या कोई बे-पैंदे का लोटा है
वो हाथी है तो है, पर उस का चेहरा चाँद जैसा
है
वो जब साहिल पे चलता है, समन्दर भी उछलता
है
बहुत सम्मान देता है उसूलों को मेरा बलमा
मुहूरत शोध कर ही वो मेरे नज़दीक आता है
बहुत ही ध्यान रखता है सफ़ाई का मेरा चिरकुट
मुझे मिलने से पहले वो पसीने से नहाता है
उसे लगता है बस उल्लू पे ही आती हैं लक्ष्मी-माँ
बस इस कारन से ही वो बावला 'उल्लू का पट्ठा' है
मत्तगयन्द सवैया छन्द
छुट्टन से छमिया ने कहा छिटके मत छोकरे नैन लड़ा ले
फूल सजा गजरे में गुलाब का इत्र लगा कर मूड बना ले
नौकरिया ने शरीर में जङ्ग लगा दई है तो उपाय करा ले
चङ्ग बजाय के रङ्ग उड़ाय के भङ्ग चढाय के जङ्ग छुड़ा ले
खुशियों का स्वागत करे, हर आँगन हर द्वार|
कुछ ऐसा हो इस बरस, होली का त्यौहार||