दोहे - श्लेष चन्द्राकर

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देखो कितना आजकल, बदल गया संसार |
अपने ही करने लगे, अपनों पर ही वार ||

सच कहना लगने लगा, मुझको तो अब पाप |
सच कहने वाले यहाँ, झेल रहे संताप ||

तन मन चंगा हो तभी, मन में उठे हिलोर |
वरना सुर संगीत भी, लगने लगता शोर ||

मिली भगत का खेल है, समझो मेरे यार |
रिश्वतखोरी का यहाँ, चलता है व्यापार ||

पग पग पर मिलने लगे, अब तो बंधु दलाल |
करवट कैसी ले रही, देख समय की चाल ||

सहते आये हैं सदा, सहना अपना काम |
क्योंकि भैया लोग हम, कहलाते हैं आम ||

चुनकर भेजा था जिन्हें, आयेंगे कुछ काम |
नेता जी लेकिन वहाँ, करते है आराम ||

किस हद तक गिरने लगा, देखो अब इंसान |
नियम कायदे तोड़ना, समझे अपनी शान ||

मर्यादा को भूल कर, करता पापाचार |
मानव अब करने लगा, पशुओं सा व्यवहार ||

किसकी ये करतूत है, किसकी है ये भूल |
बगिया में खिलते नही, पहले जैसे फूल ||

लागू करते योजना, जोर शोर के साथ |
आता है क्या बोलिए, जनता के कुछ हाथ ||

इंसानों को भी लगा, साँपों वाला रोग |
बात बात पर आजकल, उगल रहे विष लोग ||

बना रहे हैं किस तरह, जहरीला माहौल |
इक दूजे के धर्म का, उड़ा रहे माखौल ||

पाक साफ दामन कहाँ, नेताओं के आज |
नित्य उजागर हो रहे, उनके नये कुकाज ||

दहशत के माहौल में, थम जाती है साँस |
दहशतगर्दी बन गयी, आज गले की फाँस ||

बच्चों को ये क्या हुआ, ओ मेरे करतार |
बहकावे में आ, करें, आतंकी व्यवहार ||

लड़ने में सब व्यस्त है, यहाँ जुबानी जंग |
हर घटना को दे रहे, राजनीति का रंग ||

अपने घोड़ों की कभी, कसते नही लगाम |
नाकामी अपनी छुपा, लगा रहे इल्ज़ाम ||

आजादी के बाद भी, समय नहीं उपयुक्त |
यारो! भ्रष्टाचार से, कब होंगे हम मुक्त ||

नेताओं की मति गई, सत्ता का सुख भोग |
शब्दों का करने लगे, स्तरहीन प्रयोग ||

कोरे भाषण से नही, बनने वाली बात |
सच्चा नेता है वही, बदले जो हालात ||

इमारतें बहुमंजिला, ढँक लेतीं आकाश |
झोपड-पट्टी को मिले, कैसे स्वच्छ प्रकाश ||

मार काट से क्या कभी, निकला है हल यार |
राह गलत आतंक की, छोड़ो तुम हथियार ||

रिश्वत का पैसा अगर, घर में लाये बाप |
बच्चो! कहना तुम उन्हें, रिश्वत लेना पाप ||

चुप रहने से तो नही, सुधरेंगे हालात |
चुभती है खामोशियाँ, कह दो मन की बात ||
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* श्लेष चन्द्राकर, 

09926744445

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