दुष्यन्त कुमार |
१ सितम्बर यानि दुष्यंत कुमार की जन्म तिथि| जैसे हम
लोग फिल्मी गीत सुनते हैं पर अक्सर उस गीत के गीतकार का नाम हमें याद नहीं होता| मेरे
द्वारा दुष्यंत कुमार का फेन होना भी कुछ
ऐसा ही है| कहीं सुनी
/ पढ़ी पंक्तियाँ दिमाग़ में दर्ज़ हो कर रह गईं और कालांतर में पता चला कि ये
पंक्तियाँ भारतीय जन मानस के अन्तर्मन में स्थायी निवास पा चुके मशहूर कवि / शायर
दुष्यंत कुमार की हैं| दुष्यंत कुमार
को समर्पित एक ग़ज़ल :-
ख़ुसूसो-ख़ास नगीनों में कोहेनूर थे आप।
दिलोदिमाग़ प तारी अजब सुरूर थे आप॥
विशिष्ट-दौर की पहिचान बन गये ख़ुद ही।
न मीर, जोश न तुलसी, कबीर, सूर थे आप॥
तमाम ज़हनों के नज़दीक आप हैं अब तक।
तो क्या हुआ कि ज़रा क़ायदों से दूर थे आप॥
जिसे जो कहना हो कहता रहे, उबलता रहे।
हमें तो लगता नहीं है कि बे-शऊर थे आप॥
फ़िज़ा के रंग में शामिल है ख़ुशबू-ए-दुष्यंत|
ज़हेनसीब, हमारे फ़लक का नूर थे आप॥
पुराना काम
सलीक़ेदार कहन के नशे में चूर था वो|
दिलोदिमाग़ पे तारी अजब सुरूर था वो|१|
वो एक दौर की पहिचान बन गया खुद ही|
न मीर, जोश न तुलसी, कबीर, सूर था वो|२|
तमाम लोगों ने अपने क़रीब पाया उसे|
तो क्या हुआ कि ज़रा क़ायदों से दूर था वो|३|
लबेख़मोश की ताक़त का इल्म था उस को|
कोई न बोल सका यूं कि बे-श'ऊर था वो|४|
फ़िज़ा के रंग में शामिल है ख़ुशबू-ए-दुष्यंत|
ज़हेनसीब, हमारे फ़लक का नूर था वो|५|
मुफ़ाएलुन फ़एलातुन मुफ़ाएलुन फालुन
1212 1122 1212 22
बहरे मुजतस मुसमन मखबून महजूफ
दुष्यंत कुमार को ले कर कुछ और बातें अगली पोस्ट में जारी .......................................