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दोहे - डॉ. अवधी हरि

 


होने देते युद्ध क्याकभी कृष्ण भगवान। 

बात, बात से मानते, अगर दुष्ट इन्सान।।

 

नहीं थोपना चाहिए, अपना कहीं महत्व।

लाख हमारा हो कहीं, प्रेम और अपनत्व।।

त्रिलोक सिंह ठकुरेला के कुण्डलिया छन्द

 


कविता जीवन सत्व हैकविता है रसधार ।

अलंकार,रस,छंद में, भाव खड़े साकार ।।

भाव खड़े साकार, कल्पना जाग्रत  होती ।

कर देते धनवान, शब्द के उत्तम  मोती । 

'ठकुरेला' कविराय, हरे तम जैसे सविता ।

संस्कृत दोहे हिन्दी अर्थ सहित - डॉ. लक्ष्मीनारायण पाण्डेय


 

याति भीतिभयभीषणं वर्षं दर्पितमेव,

जनयेज्जनगणमङ्गलं ,नववर्षं हे देव !


 भीतिभूखभय से भरा रुग्ण गया चौबीस ।

जनगणमनमंगल करे,हे भगवन् पच्चीस ।

दोहे - राजमूर्ति 'सौरभ'


 

राधे! राधे!राधिका, मोहन!मोहन! श्याम।

दोनों ही जपने लगे,अपना-अपना नाम।।

 

एक दूसरे को जपें, निशिदिन, आठों याम।

साधारण प्रेमी नहीं, हैं राधा-घनश्याम।।

नये साल के दोहे - रमेश शर्मा



आई है नव वर्ष की, नई नवेली भोर ।

खिड़की से दिल की मुझे, झाँक रहा चितचोर ।।

 

पहुँची हो चौबीस में, लेखन से कुछ ठेस ।

क्षमा ह्रदय से माँगता, उनसे आज रमेश ।।

माँ सरस्वती के चालीस नाम वाली सरस्वती वन्दना - नवीन

हे मरालासन्न वीणा-वादिनी माँ शारदे।

वागदेवीभारतीवर-दायिनी माँ शारदे॥

 

श्वेत पद्मासन विराजितवैष्णवी माँ- शारदे।

हे प्रजापति की सुताशतरूपिणी माँ शारदे।।

 

चंद्रिकासुर-वंदिताजग-वंदितावागेश्वरी।

कामरूपाचंद्रवदनामालिनी माँ शारदे॥

 

अम्बिकाशुभदासुभद्राचित्रमाल्यविभूषिता।

शुक्लवर्णाबुद्धिदासौदामिनी माँ शारदे॥

 

दिव्य-अंगापीतविमलारस-मयीभामाशिवा।

रक्त-मध्याविंध्यवासागोमती माँ शारदे॥

 

पद्म-निलयापद्म-नेत्रीरक्तबीजनिहंत्रिणी।

धूम्रलोचनमर्दनाअघ-नासिनी माँ- शारदे॥

 

हे महाभोगापरापथभ्रष्ट जग सन्तप्त है।

वृष्टि कीजै प्रेम कीअनुराग की माँ शारदे॥

 

नवीन सी चतुर्वेदी

विष्णु की विराटता में शारदे कौ वास है - नवीन चतुर्वेदी


अग्नि-वर्ण धातु धार, हृदय प्रसन्न होंय,

स्वर्ण की विविधता में शारदे कौ वास है ।

 

सत्य, शान्ति, शील, धैर्य मातु शारदे की दैन,

प्रति एक शुचिता में शारदे कौ वास है ।

 

पाहन सों चक्र, चक्रवातन सों विश्व बन्यौ,

नित्य की नवीनता में शारदे कौ वास है ॥

 

कल्पना विहीन विश्व कैसें विसतार पातो,

विष्णु की विराटता में शारदे कौ वास है ।।

 

नवीन सी. चतुर्वेदी

 

सरस्वती वन्दना, घनाक्षरी छन्द

दोहे - रामबाबू रस्तोगी

हंस रेत चुगने लगे, बिना नीर का ताल।
मछुआरे खाने लगे , काट- काट कर जाल॥

जिसकी जैसी साधना , उसके वैसे भाग।
तितली कड़वी नीम पर , बैठी पिये पराग॥

सपनों के बाज़ार में , आँसू का क्या मोल।
यह पत्थर दिल गाँव है , यहाँ ज़ख़्म मत खोल॥

हरसिंगार की चाह में , हम हो गये बबूल।
शापित हाथों में हुआ , मोती आकर धूल॥

अलग-अलग हर ख़्वाब का, अलग- अलग महसूल।
एक भाव बिकते नहीं सेमल और बबूल॥

राजपथों पर रौशनी , बाकी नगर उदास।
उम्र क़ैद है चाँद को , सूरज को वनवास॥

घर का कचरा हो गये , अब बूढ़े माँ- बाप।
बेटे इंचीटेप से उम्र रहे हैं नाप॥


दोहे - मधुर बिहारी गोस्वामी

चहूँ ओर भूखे नयन, चाहें कुछ भी दान।
सूखी बासी रोटियाँ, लगतीं रस की खान।।

भूखीं आँखें देखतीं, रोटी के कुछ कौर।
एक बार फिर ले गया, कागा अपने ठौर ।।

लुटती पिटती द्रौपदी, आती सबके बीच ।
अंधे राजा से सभी, रहते नज़रें खींच।।

पेट धँसा, मुख पीतिमा, आँखें थीं लाचार।
कल फिर एक गरीब का, टूटा जीवन तार।।

यह कैसा युग आ गया, कदम कदम पर रोग।
डरे - डरे रस्ते दिखें, मरे-मरे सब लोग।।

जहाँ चलें दिखती वहाँ, पगलायी सी भीड़।
आओ बैठें दूर अब , अलग बना कर नीड़।।


डा. मधुर बिहारी गोस्वामी

दोहे - श्लेष चन्द्राकर

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देखो कितना आजकल, बदल गया संसार |
अपने ही करने लगे, अपनों पर ही वार ||

सच कहना लगने लगा, मुझको तो अब पाप |
सच कहने वाले यहाँ, झेल रहे संताप ||

तन मन चंगा हो तभी, मन में उठे हिलोर |
वरना सुर संगीत भी, लगने लगता शोर ||

मिली भगत का खेल है, समझो मेरे यार |
रिश्वतखोरी का यहाँ, चलता है व्यापार ||

पग पग पर मिलने लगे, अब तो बंधु दलाल |
करवट कैसी ले रही, देख समय की चाल ||

सहते आये हैं सदा, सहना अपना काम |
क्योंकि भैया लोग हम, कहलाते हैं आम ||

चुनकर भेजा था जिन्हें, आयेंगे कुछ काम |
नेता जी लेकिन वहाँ, करते है आराम ||

किस हद तक गिरने लगा, देखो अब इंसान |
नियम कायदे तोड़ना, समझे अपनी शान ||

मर्यादा को भूल कर, करता पापाचार |
मानव अब करने लगा, पशुओं सा व्यवहार ||

किसकी ये करतूत है, किसकी है ये भूल |
बगिया में खिलते नही, पहले जैसे फूल ||

लागू करते योजना, जोर शोर के साथ |
आता है क्या बोलिए, जनता के कुछ हाथ ||

इंसानों को भी लगा, साँपों वाला रोग |
बात बात पर आजकल, उगल रहे विष लोग ||

बना रहे हैं किस तरह, जहरीला माहौल |
इक दूजे के धर्म का, उड़ा रहे माखौल ||

पाक साफ दामन कहाँ, नेताओं के आज |
नित्य उजागर हो रहे, उनके नये कुकाज ||

दहशत के माहौल में, थम जाती है साँस |
दहशतगर्दी बन गयी, आज गले की फाँस ||

बच्चों को ये क्या हुआ, ओ मेरे करतार |
बहकावे में आ, करें, आतंकी व्यवहार ||

लड़ने में सब व्यस्त है, यहाँ जुबानी जंग |
हर घटना को दे रहे, राजनीति का रंग ||

अपने घोड़ों की कभी, कसते नही लगाम |
नाकामी अपनी छुपा, लगा रहे इल्ज़ाम ||

आजादी के बाद भी, समय नहीं उपयुक्त |
यारो! भ्रष्टाचार से, कब होंगे हम मुक्त ||

नेताओं की मति गई, सत्ता का सुख भोग |
शब्दों का करने लगे, स्तरहीन प्रयोग ||

कोरे भाषण से नही, बनने वाली बात |
सच्चा नेता है वही, बदले जो हालात ||

इमारतें बहुमंजिला, ढँक लेतीं आकाश |
झोपड-पट्टी को मिले, कैसे स्वच्छ प्रकाश ||

मार काट से क्या कभी, निकला है हल यार |
राह गलत आतंक की, छोड़ो तुम हथियार ||

रिश्वत का पैसा अगर, घर में लाये बाप |
बच्चो! कहना तुम उन्हें, रिश्वत लेना पाप ||

चुप रहने से तो नही, सुधरेंगे हालात |
चुभती है खामोशियाँ, कह दो मन की बात ||
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* श्लेष चन्द्राकर, 

09926744445