होने देते युद्ध क्या, कभी कृष्ण भगवान।
बात, बात
से मानते, अगर दुष्ट इन्सान।।
नहीं थोपना चाहिए, अपना
कहीं महत्व।
लाख हमारा हो कहीं, प्रेम और अपनत्व।।
होने देते युद्ध क्या, कभी कृष्ण भगवान।
बात, बात
से मानते, अगर दुष्ट इन्सान।।
नहीं थोपना चाहिए, अपना
कहीं महत्व।
लाख हमारा हो कहीं, प्रेम और अपनत्व।।
कविता जीवन सत्व है, कविता है रसधार ।
अलंकार,रस,छंद
में, भाव खड़े साकार ।।
भाव खड़े साकार, कल्पना
जाग्रत होती ।
कर देते धनवान, शब्द
के उत्तम मोती ।
'ठकुरेला' कविराय, हरे तम जैसे सविता ।
याति भीतिभयभीषणं वर्षं दर्पितमेव,
जनयेज्जनगणमङ्गलं ,नववर्षं हे
देव !
जनगणमनमंगल करे,हे भगवन् पच्चीस ।
राधे! राधे!राधिका, मोहन!मोहन! श्याम।
दोनों ही जपने लगे,अपना-अपना
नाम।।
एक दूसरे को जपें, निशिदिन, आठों
याम।
साधारण प्रेमी नहीं, हैं राधा-घनश्याम।।
आई है नव वर्ष की, नई नवेली भोर
।
खिड़की से दिल की मुझे, झाँक रहा
चितचोर ।।
पहुँची हो चौबीस में, लेखन से कुछ
ठेस ।
क्षमा ह्रदय से माँगता, उनसे आज रमेश ।।
हे
मरालासन्न वीणा-वादिनी माँ शारदे।
वागदेवी, भारती, वर-दायिनी माँ शारदे॥
श्वेत
पद्मासन विराजित, वैष्णवी माँ- शारदे।
हे
प्रजापति की सुता, शतरूपिणी माँ शारदे।।
चंद्रिका, सुर-वंदिता, जग-वंदिता, वागेश्वरी।
कामरूपा, चंद्रवदना, मालिनी माँ शारदे॥
अम्बिका, शुभदा, सुभद्रा, चित्रमाल्यविभूषिता।
शुक्लवर्णा, बुद्धिदा, सौदामिनी माँ शारदे॥
दिव्य-अंगा, पीत, विमला, रस-मयी, भामा, शिवा।
रक्त-मध्या, विंध्यवासा, गोमती माँ शारदे॥
पद्म-निलया, पद्म-नेत्री, रक्तबीजनिहंत्रिणी।
धूम्रलोचनमर्दना, अघ-नासिनी
माँ- शारदे॥
हे
महाभोगा, परा, पथभ्रष्ट जग सन्तप्त है।
वृष्टि
कीजै प्रेम की, अनुराग की माँ शारदे॥
नवीन सी चतुर्वेदी
अग्नि-वर्ण धातु धार, हृदय प्रसन्न
होंय,
स्वर्ण की विविधता में शारदे कौ वास है ।
सत्य, शान्ति, शील, धैर्य मातु शारदे की दैन,
प्रति एक शुचिता में शारदे कौ वास है ।
पाहन सों चक्र, चक्रवात’न सों विश्व बन्यौ,
नित्य की नवीनता में शारदे कौ वास है ॥
कल्पना विहीन विश्व कैसें विसतार पातो,
विष्णु की विराटता में शारदे कौ वास है ।।
नवीन सी. चतुर्वेदी
सरस्वती वन्दना, घनाक्षरी छन्द