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व्यंग्य - शो ऑफ युग - अर्चना चतुर्वेदी

कलियुग सतयुग आदि चार युगों के बाद जो पांचवा युग है वो है दिखाबा युग अंग्रेजी में बोलेन तो शो ऑफ़ युग ...इस युग के लोग हर चीज दुनिया को दिखाकर ही खुश होते हैं ..वे जमाने गए जब कहा जाता था दान गुप्त रखो ..अपनी तारीफ़ खुद मत करो आदि | अब तो दिखाया नहीं तो समाज में बैठने लायक नहीं समझे जायेंगे

व्यंग्य - आ बैल मुझे मार - अर्चना चतुर्वेदी

 यदि आप आ बैल मुझे मार टाइप कहावत का वास्तविक अनुभव लेना चाहते हैं और गलती से या खुशनसीबी से आप साहित्य की दुनिया में भी हैं तो आप चाचा मामा पिता पत्नी जिससे भी आपको प्रेम हो तुरंत उनके नाम से एक पुरस्कार शुरू कर दें , यदि आपको सिर्फ खुद से प्रेम हो और खुद को महान भी समझते हैं तो अपने मरने का इंतजार करने की जरूरत नही आप अपने नाम से ही पुरस्कार शुरू कर दें आपकी महानता में चार चाँद लगाने का कार्य दूसरे कर ही देंगे ।

व्यंग्य - सच्चे देशभक्त - अर्चना चतुर्वेदी

हम भारतीय लोग दिल से बड़े ही प्यारे होते हैं और बड़े ही एडजस्टिंग टाइपहम हर त्यौहार हर माहौल में खुद को सेट कर लेते हैं | जैसे वेलेंटाइन डे और करवा चौथ पर हम सोहनी महिवाल और शिरी फरहाद को भी कोम्प्लेक्स दे सकते हैं | मदर्स डे और फादर्स डे पर हर तरफ श्रवण कुमार की खेती लहलहाने लगती है | ठीक उसी तरह 26

'लव की हॅप्पी एंडिंग' एवं 'कुछ दिल की कुछ दुनिया की' - पुस्तक समीक्षा

अब जरूर हम मथुरा को ठीकठाक सा एक टाउन कह सकते हैं मगर 1990 के आसपास मथुरा इतना डिवैलप नहीं हुआ था । हालाँकि रिफायनरी आ चुकी थी, टाउनशिप बस चुकी थी, कॉलोनियों की बात हवाओं में तैरने लगी थी फिर भी 1990 का मथुरा 1980 के मथुरा से बहुत अधिक उन्नत नहीं लगता था ।

उस मथुरा की एक गली में जन्मी हुई लड़की की शादी महानगर में होती है । मथुरा के संस्कारों को मस्तिष्क में और महानगर वाले पतिदेव के अहसासात को दिल में सँजोये हुए वह गुड़िया बाबुल का घर छोड़ कर पी के नगर के लिए निकल पड़ती है । जिस तरह कहते हैं न कि दुनिया गोल है उसी तरह गृहस्थी की दुनिया भी सभी जगह और सभी के लिए गोल-मोल ही होती है । उस गोल-मोल दुनिया में यह लड़की डटकर परफोर्म करती है, दूरदर्शन, सी एन एन, सी एन बी सी, डी डी भारती और आई बी एन से मीडिया अनुभव ग्रहण करते हुए कालान्तर में एक सफल लेखिका बन कर राष्ट्रीय पटल पर छा जाती है । इस लड़की का घर का नाम गुड़िया ही है और अब भारतीय साहित्य-जगत इसे अर्चना चतुर्वेदी के नाम से जानता है । उत्कृष्ट कोटि की व्यंग्य लेखिका अर्चना जी का साहित्यिक प्रवास उत्तरोत्तर ऊर्ध्व-गामी रहा है । ब्रजभाषा और हिन्दी दौनों ही क्षेत्रों में आप की रचनाओं को पाठकों का अपरिमित स्नेह प्राप्त हुआ है । आप की अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । आपको अनेक पुरस्कार मिल चुके हैं ।

पिछले दिनों आप की दो पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । पहली पुस्तक “लव की हॅप्पी एंडिंग” जो कि हास्य कहानी संग्रह है और दूसरी पुस्तक “कुछ दिल की कुछ दुनिया की” किस्सा गोई पर आधारित है । अर्चना चतुर्वेदी प्रसन्नमना लेखिका हैं, दिल से लिखती हैं, मज़े ले-ले कर लिखती हैं, इसीलिए इन्हें पढ़ने वाले इन्हें बार-बार पढ़ना चाहते हैं ।





इन पुस्तकों को भावना प्रकाशन से मँगवाया जा सकता है ।

भावना प्रकाशन – फोन नम्बर – 8800139685, 9312869947

पुरुष दिवस पर कविता - अर्चना चतुर्वेदी


मर्द के दर्द

तुमने कहा एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो ?
मैं खटता रहा दिन रात ताकि जुटा सकूँ
सिंदूर के साथ गहने कपड़े तुम्हारे लिए
और देख सकूँ तुम्हे मुस्कुराते हुए ..

तुमने कहा मर्दों के दिल नहीं होता
और मैं मौन आंसू पीता रहा .और छुपाता रहा अपने हर दर्द को
और उठाता रहा हर जिम्मेदारी हँसते हँसते ..
ताकि तुम महसूस ना कर सको किसी भी दर्द को और खिलखिलाती रहो यूँ ही

तुम मुझे बदलना चाहती थी और जब मैंने ढाल लिया खुद को तुम्हारे मुताबिक
और एक दिन कितनी आसानी से तुमने कह दिया
तुम बदल गए हो ...
और इस बार मैं मुस्कुरा दिया था हौले से

अबकी तुमने कहा ‘तुम मर्द एक बार में सिर्फ एक काम ही कर सकते हैं
हम महिलाएं ही होती हैं मल्टीटास्किंग में महारथी
और मैं ऑफिस ,बॉस ,घरबच्चे ,माँ और
तुम्हें खुश रखने के सारे जतन करता रहा
बिना थके बिना हारे

सच कहा तुमने ,
नहीं जानता मैं सिंदूर की कीमत
ना ही होता है मुझे दर्द आखिर मैं हूँ मर्द
और मर्द के दर्द नहीं होता ।।

अर्चना चतुर्वेदी

व्यंग्य - वाह रे मीडिया - अर्चना चतुर्वेदी

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धर्म के काम में हवन होवे चाहे विवाह में हो या गृहशांति में तब थोड़ो थोड़ो घी डारो जाए ताकि अग्नि प्रज्वलित रहे, पर हमारे देश में  मीडिया देश में अशांति के हवन में कनस्तर भर घी उड़ेल कर अग्नि कूं भड़काबे कौ काम बखूबी कर रह्यो है  | जैसे कुटिल पडौसने सास बहु की लड़ाई करा कै मजा लेमे, उनके कान में मंतर फूंक कें वैसे ही न्यूज चैनल वाले भी अलग अलग धर्मन की सास बहु अर्थात कट्टर लोगन कूं बिठा के , ऐसे ऐसे सवाल कर डारे  कि कई बार तो वहीँ हाथापाई की नौबत आ जाबे है | ऐसे लोगन के लिए हमारे यहाँ बृज भाषा में एक कहावत बोली जाबे  “भुस में आग लगाय जमालो,दूर भजी” पर ये मीडिया वारे तो इतने पहुंचे भये  हैं कि आग लगाकें  बापे ही  रोटियां सेकबे बैठ जामे,भाजे भी नाय  |

चाचा मामा की जुगाड़ से चैनल और अखबार में नौकरी पाए भये  ये रिपोर्टर खुद कूं  सर्वज्ञानी समझें और किसी पे  भी कमेन्ट करना काई भी  आग को हवा देना अपनो  परम कर्तव्य समझें  | इनके हिसाब से समाचार मतलब बुरी बातें ही होबे |

ये लोग हर खबर कूं  चटपटी  और मसालेदार बनाबे  के चक्कर में ख़बरन कूं  गरिष्ठ बना रहे हैं दिल्ली में कछु  ब्लूलाइन बस वारे  एक दूसरे से होड़ कर बसों कूं  भगाते थे बिना ये सोचे कि सवारी की सुरक्षा भी उनकी ही  जिम्मेदारी हते , उसी तरह ये लोग भी अपनी आपसी दौड़ और ब्रेकिंग न्यूज के कम्पटीशन में देश के लिए घातक बनते जाय  रहे हैं | काई  के बयान को तोड़ मरोड़ कर बार बार दिखानो  और तुरंत दो चार खर खोपड़ीन कूं  बुलाके कुचर्चा कराबो इनको टाइम पास है क्योंकि बा चर्चा कौ कछु निष्कर्ष तौ निकलेगो ना जूतम पजार और है जाबेगी |

काई भी  साधारण सी न्यूज कूं  भी डरावने म्यूजिक अजीब ढंग से सुनाके ये रामगोपाल वर्मा की डरावनी फिल्मन कूं भी पीछे छोड़ चुके हैं | ये लोग भूल चुके हैं कि ये पत्रकार हैं और इनको  काम लोगन तक खबर पहुंचाबो हैं, लोग बागन कूं कब्र में पहुँचाबे कौ ना है  | इनकी हरकतन  कूं  देखके कभी कभी तौ  अपने देश के मीडिया पर शक होबे लगो है ...  क्या सचमुच जे  हमारे देश के ही हैं मुंबई हमलन  के दौरान जा तरीका से  इन्होने पल पल की खबर और प्लानिंग दिखाई  बाको  फायदा देश कूं नहीं आतंकवादियन कूं ज्यादा भयो जो टीवी देखकर अपनी रणनीति बना रहे हे | यानी बिनकुं हमारे न्यूज चैनलों की अक्लमंदी पर पूरो  भरोसो हो  | जे तौ अधर तैयार रहें जे बताबे कूं कि सरकार पकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ अब का करबे की सोच रही हते | जा देश में ऐसी मीडिया ऐसी पत्रकारिता होबेगी बाको मालिक तौ भगवान भी ना है सके |

मीडिया तो जो है सो है हमारे यहाँ की जनता भी सुभानअल्लाह है, कोई बोले “कौवा कान ले गयो ” तो जे लोग डंडा लेके कौव्वे के पीछे भाग लेंगे | अरे महानआत्मा पहले कान देख तौ  लो गयो  भी है कि नाय  | भाई अक्ल ना चल रही तो वो वाली कोल्ड्रिंक पीकें अपनी ‘अकल लगाओ’ कम से कम सुने सुनाये पर तौ ना जाओ तभी जा  देश कौ  और लोगन  कौ कुछ भलो है सके।

अर्चना चतुर्वेदी
9899624843