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दोहे - मनोहर अभय

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मनोहर अभय


किया भरोसा आपका होगी नित ज्योनार 
सुबह शाम की रोटियाँ हुईं और दुश्वार

नखत सिमटने में लगे टूटी तिमिरा घोर
जगा रहा है भोर को गंध पवन झकझोर

मृग शावक ने दौड़ कर मारी एक छलाँग
काजल भरी पहाड़ियाँ गया निमिष में लाँघ

छत पर पड़ी दरार हैं हुए छेद पर छेद 
बिछा रहे तिरपाल हैं छेद कुरेद कुरेद

साग विदुर घर आपने खाया प्रभो महान 
मान बढ़ा यशगान भी मिले दान मतदान

आए बैठे दम लिया लेटे पलंग बिछाय 
हम समझे घर आपना निकला खुली सराय

मार रहे हैं मेमने छिली ईंट की चोट
पीछे बैठे भेड़िए पहने ओवरकोट

घना अँधेरा देख कर माँगा एक चिराग
सजन हमारे दे गए भरे गाँव में आग.

पंख उगे चूजे उड़े लाँघे क्षितिज असीम
व्यथा नीड की क्या कहें बूढ़े पीपल नीम

काजल आँजा धूप ने दुपहर केश सँवार 
साँझ साँवरी सी सजी भिगो गई बौछार

मनोहर अभय
9773141385


दोहे

दोहे - मनोहर अभय

दोहे – मनोहर अभय
+91 9773141385


हम बरगद जैसे विटप फैलीं शाख प्रशाख ,
धूप सही छाया करी पंछी पाले लाख .

आठ गुना सम्पद बढ़ी ड्योढ़ी हुई पगार ,
बढ़त हमारी खा गया बढ़ता हुआ बज़ार |

क्या प्रपंच रचने लगे तुम साथी शालीन,
खुलीं मछलियाँ छोड़ दीं बगुलों के आधीन |

महक पूछती फिर रही उन फूलों का हाल ,
कहीं अनछुए झर गए उलझ कँटीली डाल.

गढ़े खिलौंने चाक पर माटी गूँद कुम्हार,
हम माटी से पूछते किसने गढ़ा कुम्हार

चलो सुबह की धूप में खुल कर करें नहान,
धुले जलज सी खिल उठे फिर अपनी पहचान

सुनो धरा की धड़कनें ऋतुओं के संवाद ,
चन्दन धोये पवन से करो न वादविवाद

बैजनियाँ बादल घिरे बूँदें झरी फुहार,
धूप नहाने में लगी सारी तपन उतार

आमंत्रण था आपका हम हो गए निहाल ,

जब तक पहुँचे भोज में उखड़ गए पंडाल.