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अवधी गजल - आपनि भासा आपनि बानी अम्मा हैं - अशोक अज्ञानी

अवधी गजल

आपनि भासा आपनि बानी अम्मा हैं।
भूली बिसरी कथा कहानी अम्मा हैं।

धरी हुवैं दालान म जइसे बेमतलब,
गठरी फटही अउर पुरानी अम्मा हैं।

नीक लगै तौ धरौ, नहीं तौ फेंकि दियौ,
घर का बासी खाना – पानी अम्मा हैं।

मुफत म माखन खाँय घरैया सबै, मुला
दिन भर नाचैं एकु मथानी अम्मा हैं।

पूरे घरु क भारु उठाये खोपड़ी पर,
जस ट्राली मा परी कमानी अम्मा हैं।

जाड़ु, घामु, बरखा ते रच्छा कीन्ह करैं,
बरहौं महिना छप्पर-छानी अम्मा हैं।

लरिका चाहे जेतना झगड़ा रोजु करैं,
लरिकन ते न कबौ-रिसानी अम्मा हैं।

ना मानौ तौ पिछुवारे की गड़ही हैं,
मानौ तौ गंगा महरानी अम्मा हैं।

‘अग्यानी’ न कबौ जवानी जानि परी,
बप्पा ते पहिलहै बुढ़ानी अम्मा हैं।

__ कवि अशोक ‘अग्यानी’

सौजन्य - धर्मेन्द्र कुमार सज्जन


अवधी गजल - जन गण मन अधिनायक होइगा। - अशोक अज्ञानी

जन गण मन अधिनायक होइगा।
गुण्डा    रहै,    विधायक   होइगा।

पढ़े – लिखे    करमन   का   र्‌वावैं,
बिना  पढ़ा   सब  लायक  होइगा।

जीवन  भर  अपराध  किहिस जो,
राम   नाम  गुण  गायक  होइगा।

कुरसी  केरि  हनक  मिलतै  खन,
कूकुर    सेरु   यकायक    होइगा।

गवा  गाँव  ते  जीति  केलेकिन
सहरन   का   परिचायक होइगा।

वादा    कइके    गा    जनता   ते,
च्वारन  क्यार सहायक होइगा।

जेहि   पर   रहै   भरोसा  सबका,
अग्यानी’   दुखदायक   होइगा।


ग़ज़लकार  अशोक ‘अग्यानी’
प्रस्तुति - धर्मेन्द्र कुमार सज्जन