उठानी
थी हम को सलाहों की गठरी।
मगर ढो रहे हैं गुनाहों की गठरी॥
मगर ढो रहे हैं गुनाहों की गठरी॥
कबीर आप जैसे जुलाहों की गठरी।
कहाँ खो गई ख़ैर-ख़्वाहों१ की गठरी॥
१ शुभ-चिन्तकों
कहाँ खो गई ख़ैर-ख़्वाहों१ की गठरी॥
१ शुभ-चिन्तकों
मुक़द्दर
में ज़ख़्मात लिक्खे थे अपने।
सो ढोनी पड़ी हम को फ़ाहों२ की गठरी॥
२ घाव पर लगाया जाने वाला रूई का फ़ाहा
सो ढोनी पड़ी हम को फ़ाहों२ की गठरी॥
२ घाव पर लगाया जाने वाला रूई का फ़ाहा
उदासी
को सब पर भरोसा नहीं था।
कहाँ सब को सौंपी है आहों की गठरी॥
कहाँ सब को सौंपी है आहों की गठरी॥
हमारे लिये तो मुहब्बत का मतलब।
मुरव्वत से भीनी निगाहों की गठरी॥
मुरव्वत से भीनी निगाहों की गठरी॥
तुम्हारा हृदय तो नगीना है साहब।
हमारा हृदय है पनाहों की गठरी॥
हमारा हृदय है पनाहों की गठरी॥
ये हलकी है गुल-फूल से भी यक़ीनन।
उठा कर तो देखो निबाहों की गठरी॥
उठा कर तो देखो निबाहों की गठरी॥
हमारे ही सपने हैं पलकों के पीछे।
अमाँ खोलिये तो गवाहों की गठरी॥
अमाँ खोलिये तो गवाहों की गठरी॥
समय की अदालत में वो भी हैं मुन्सिफ़।
“चुराते हैं जो बादशाहों की गठरी”॥
“चुराते हैं जो बादशाहों की गठरी”॥
‘नवीन’ एक और ज़ाविये३ के
मुताबिक़।
लगे है ख़ला! ख़ानक़ाहों४ की गठरी॥
लगे है ख़ला! ख़ानक़ाहों४ की गठरी॥
३ दृष्टिकोण ४ गुफाओं
नवीन
सी चतुर्वेदी
बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
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