मदन मोहन अरविन्द
जोपै सौ बेर गिरौ गिर कै सम्हरते रहियों
गैल कैसी हू मिलै हँस कै गुजरते रहियों
गैल कैसी हू मिलै हँस कै गुजरते रहियों
राह रोकें जो कहूँ दर्द के सागर गहरे
नाव धीरज की पकड़ पार उतरते रहियों
नाव धीरज की पकड़ पार उतरते रहियों
टूटी पँखुरी से हवा बीच बिखर जइयों मत
तुम जो बिखरौ तौ महक बन कै बिखरते रहियों
तुम जो बिखरौ तौ महक बन कै बिखरते रहियों
रंग देखै तौ खरौ सौनौ बतावै दुनिया
आँच में जेते तपौ तेते निखरते रहियों
आँच में जेते तपौ तेते निखरते रहियों
पास कै दूर मिलै, मिल कै रहैगी मंजिल
अपने हिस्सा कौ सफ़र चाव सौं करते रहियों
अपने हिस्सा कौ सफ़र चाव सौं करते रहियों
बाढ़ आवै न तो भमर आवै
अब किनारौ मिले लहर आवै
गैल सिगरी बुहारि राखी हैं
मीत कब कौन सी डगर आवै
मीत कब कौन सी डगर आवै
भूलिबे की जो ठान ठानी है
भूल सौं एक बेर घर आवै
भूल सौं एक बेर घर आवै
आसरे आस के रहूँ कब लौं
आस हु तौ कहूँ नजर आवै
आस हु तौ कहूँ नजर आवै
बैद ऐसी घुटी बता कोई
देखते-देखते असर आवै
देखते-देखते असर आवै
बरखा बहार फूल कली की चमन की बात करैं
सुधि भूल जायँ और सलोने सपन की बात करैं
सुधि भूल जायँ और सलोने सपन की बात करैं
उथले भए लखात सबै रीत-प्रीत के धारे
कित जाय बुझै प्यास कहाँ आचमन की बात करैं
कित जाय बुझै प्यास कहाँ आचमन की बात करैं
हँसि कैं उतार देत अचक पीठ में छुरी गहरी
सूधे रहे न लोग निरी बाँकपन की बात करैं
सूधे रहे न लोग निरी बाँकपन की बात करैं
बिखरे तमाम पंख जमाने के जाल में जिनके
सपनौ जिनैं उड़ान कहा वे गगन की बात करैं
सपनौ जिनैं उड़ान कहा वे गगन की बात करैं
यजमान की कमी न पुरोहित की तौ पै ध्यान रहै
उनके जरैं न हाथ कहूँ जो हवन की बात करैं
उनके जरैं न हाथ कहूँ जो हवन की बात करैं
कातिल फिर नादानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
पाहन कौ मन पानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
पाहन कौ मन पानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
उनसौं हाथ मिलें तौ कैसैं पथरीलौ पथ दूर
किनारे
डगर-डगर आसानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
डगर-डगर आसानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
दिन पै दिन परवान चढ़ रहे आहट सौं धड़कन के
रिश्ते
हलचल आनी-जानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
हलचल आनी-जानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
गहराई तक जाते-जाते बनतौ आयौ दर्द दवाई
साँची राम कहानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
साँची राम कहानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
सुख-दुख साँझे संग बाँट लें हँसी एक सी टीस
बराबर
सब की साँझ सुहानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
सब की साँझ सुहानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
पहलें सी मदभरी चाँदनी महकी रैन बहकती बतियाँ
फिर सौं नई-पुरानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
फिर सौं नई-पुरानी कर दे ऐसी पीर कहाँ ते लाऊँ
ठौर-ठगी सी ठाड़ी दुनिया देखत है
काल खिलाड़ी खेल नए नित खेलत है
काल खिलाड़ी खेल नए नित खेलत है
सौदागर के ठाठ निराले को बरनै
हीरा कह कैं काँच खुले में बेचत है
मौजी मनुआ परमारथ की माला पै
आठ पहर स्वारथ के मनका फेरत है
आठ पहर स्वारथ के मनका फेरत है
झूठ कहौ तौ आँख लजावत है अपनी
साँच कहौ तो झूठौ आँख नटेरत है
साँच कहौ तो झूठौ आँख नटेरत है
कौन सुनै फरियाद उजेरौ कौन करै
महलन कौ अंधेर मढ़ैया झेलत है
महलन कौ अंधेर मढ़ैया झेलत है
मदन मोहन 'अरविन्द'
9867562333
9867562333
ब्रजगजल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें