Moni Gopal 'Tapish' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
Moni Gopal 'Tapish' लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

एक कविता – मोनी गोपाल ‘तपिश’

 तुम जानना चाहते हो मुझे ?
किस सीमा तक
यह निर्धारित करना है तुम्हे ही
तुमने जाने -अनजाने कितनी बार
सोचा है मुझे !
कितनी उलझन होती है
किसी को सम्पूर्ण पाते हुए भी
अधूरा जानने पर !
लोग बताते हैं तुम्हे
जाने कितनी ऐसी बातें
मेरे व्यक्तित्व की जो तुम्हे मिली हैं
केवल सुनने को,देखने जानने को नहीं !
सच यह है कि मैं केवल अभिनेता हूँ
बोल सकता हूँ केवल संवाद
जिनमे अभिनय की गंध स्वाभाविक है
और तुम ?
तुम कलाकार हो
आडम्बरयुक्त बातों को भी
सहजता से कह जाना
कि आभास तक न हो आडम्बर का
विशेषता है तम्हारी
कभी टटोलो सवयं को
मुझे न कुरेद कर
आवश्यक है इस के लिए
तुम्हारे कलाकार की मौत !
तुम पाओगे
मेरे संवाद
बदल गए हैं अपनत्व में
तुम देखोगे
जितना तुम जानते हो मुझे
शायद मैं भी नहीं जनता उतना सवयं को ! 

गीत - बात की बात में क्या हुआ है हमैं - मोनी गोपाल ‘तपिश

बात की बात में क्या हुआ है हमैं 
शब्द धन चुक गया  - साँस अवरूद्ध है !

शहर सम्बन्ध का - तोड़ता ही रहा 
भाव से भाव मन - जोड़ता ही रहा 
नेह की आस मन - में समोए रहे 
प्रीत का ये नमन - ये चलन शुद्ध है !

कितने क़िस्से कहे - कितनी बातें बनीं 
गान तो थे पुरातन - नई धुन चुनीँ 
चाँदनी की तरह - हम सरसते रहे 
सूर्य हमसे इसी - बात पर क्रुद्ध है !

कितनी टूटन सही - कितने ताने सहे 
नेह की छॉंव से - हम अजाने रहे 
फिर किसी पीर ने हमको समझा दिया 
नेह ही कृष्ण है - नेह हीं बुद्ध है !