30 नवंबर 2010

लघु कथा : घोटाला

पति:-
[अख़बार पढ़ते हुए]
अजी सुनती हो, तुमने पढ़ा क्या एक और घोटाला राजनेताओं का?

पत्नी:-
[अनसुना करते हुए]
आपने बताया नहीं, आपकी जेब में जो २० हज़ार पड़े हैं, वो कहाँ से मिले आपको?

नव-कुण्डलिया - IND vs NZ 2nd ODI JAIPUR 01.12.10

गोवाहाटी में दिखी, हट कर युवा ब्रिगेड|
कीवी जिसके सामने, करते दिखे परेड||
करते दिखे परेड, ग्रेड दिखलाई जम के|
अश्विन, युवी, विराट, श्रिसन्त धमक कर चमके|
हमने तो यारो ये ही निरधार कर लिया|
भारत जब भी खेला, जीती टीम इंडिया||

27 नवंबर 2010

क्या कहते हैं आप?

साहित्यकार कैसा होना चाहिए?

बड़ा ही सीधा सा प्रश्न है ना ये! फिर भी कुछ है जो अनुत्तरित सा लगता रहता है|

मसलन:-

क्या साहित्यकार वो है :-

जो लिखता है.......
जो दूसरों के लिखे को भी पढ़ता है..............
जो सिर्फ़ अपनी आत्मा की आवाज़ पर ही लिखता है.............
जो दूसरों के कहने पर ही लिखता है...........
जो तारीफ करना जानता है............
जो तारीफ सुनने का शैदाई होता है............
जो साधारण बात को भी अलंकृत कर दे.........
जो सिर्फ़ अपनी दुनिया में ही सुखी और संतुष्ट रहता है..............
जिसे बाहर की दुनिया को देखने का भी शौक हो............
जो झक्की मिज़ाज हो.............
जिसकी सदाशायता के चर्चे सभी जगह हों.............
जिसके यहाँ महफ़िलों का दौर चलता रहता हो...............
जिसकी बातों में हमेशा आदर्श की बातें हों...............
जो जन साधारण से ऊपर उठ कर हो.............
जिसे सरकार पुरस्कृत करे...............
जो कई कई सालों से लिख रहा हो और जिसे सभी जानते हों............
जो पहचान का मोहताज होने के बावजूद साहित्य के प्रति समर्पित हो...................
जो स्थापित लोगों की रचनाओं को सम्मान देना जनता हो............
जो नयी पौध को भी उत्साहित करने में विश्वास रखता हो.......
जो दिल पे चोट करने वाली ग़ज़ल लिखे............
जिसकी हिन्दी पर अच्छी पकड़ हो.................
जिसने कुछ नयी विधा का प्रादुर्भाव किया हो.................


आदि आदि आदि...............


और भी बहुत कुछ| क्या ये सभी लक्षण होने चाहिए एक साहित्यकार में? या इन में से कुछ? या इनके अलावा भी.....
वो!
वो!!
वो!!!
वो!!!!

क्या कहते हैं आप? हम किसे समझें साहित्यकार? क्या परिभाषा होनी चाहिए साहित्यकार की? क्या आप सभी बुद्धिजीवी अपने कीमती वक्त में से कुछ पल निकाल कर इस विषय पर आपकी बहुमूल्य टिप्पणी देना चाहेंगे? इस विद्यार्थी को आप सभी के उत्तरों की प्रतीक्षा रहेगी|

आपका अपना ही
नवीन सी चतुर्वेदी

नवरात्रि का त्यौहार, मानव मात्र का त्यौहार है

मस्ती भरे आबाल बच्चे, नाचते अरु झूमते।
पावस अनंतर तरु सघन, जैसे धरा को चूमते।।

हर ओर सुख समृद्धि के ही, दृश्य दिखते हैं घने।
जैसे कि हलधर, देख अपनी - फसल, खुशियों से तने।१।


कर्मठ मनुज, करते दिखें, बस - कर्म की आराधना।
वाणी-हृदय- व्यवहार से, बस - शक्ति की ही साधना।।

जिसने इसे अपना लिया, उस - का सफ़ीना पार है।
नवरात्रि का त्यौहार, मानव - मात्र का त्यौहार है।२। 

हरिगीतिका छंद

25 नवंबर 2010

किस का हम करें यक़ीं, सारे एक थैली के चट्टे-बट्टे - नवीन

क़रीब 10-15 साल पहले संझा जनसत्ता में प्रकाशित


किस का हम करें यक़ीं, सारे एक थैली के चट्टे-बट्टे
खाने को नहीं मिले तो फ़रमाया, अंगूर हैं खट्टे

जनता के तारनहार बड़े मासूम, बड़े दरिया दिल हैं
तर जाएँगी सातौं पीढ़ी, लिख डाले हैं इतने पट्टे

मज़हब हो या फिर राजनीति ठेकेदारों को पहिचानो
धन से बोझल, मन से कोमल तन  से होंगे हट्टे-कट्टे

जनता की ख़ातिर, जनता के अरमानों पर, जनता से ही -
जनता के हाथों जनसेवक सब खेल रहे खुल कर सट्टे 

11 नवंबर 2010

दिवाली गीत - दीपावली दीपावली दीपावली - नवीन

हर साल मेरी रूह को,
कर डालती है बावली। 
दीपावली दीपावली दीपावली॥ 

इक वजह है ये मुस्कुराने की। 
फलक से,
आँख उट्ठा कर मिलाने की। 
घरों को, 
रोशनी से जगमगाने की। 
गले मिलने मिलाने की। 
वो हो मोहन,
कि मेथ्यू,
या कि हो ग़ुरबत अली। 
दीपावली दीपावली दीपावली॥ 

हृदय-मिरदंग बजती है,
तिनक धिन धिन। 
छनकती है ख़ुशी-पायल,
छनक छन छन। 
गली में फूटते हैं बम-पटाखे भी,
धना धन धन। 
अजब सैलाब उमड़ता है घरों से ,
हो मगन, बन ठन। 
लगे है स्वर्ग के जैसी,
शहर की हर गली। 

दीपावली दीपावली दीपावली॥ 

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

9 नवंबर 2010

धोनी की तकदीर चली, भाई बल्ले बल्ले

वी वी. एस. उड़ा दिए, न्यूजिलेंड के होश|
भज्जी में भी आ गया, उन्हें देख के जोश||
उन्हें देख के जोश, रोशनी ऐसी छाई|
कीवी ने दुम दुपका कर के जान बचाई|
फ़ील्डर-बौलर पस्त, पड़े ना कुछ भी पल्ले|
धोनी की तकदीर चली, भाई बल्ले बल्ले||

6 नवंबर 2010

दीपावली के उपलक्षय में एक बाल गीत - नवीन

बच्चों के सँग हर त्यौहार
लगता है सब को सुख-सार

बच्चों की मीठी मुस्कान
मातु पिता की है वो जान

बच्चों के सपने अनमोल
इन का कोई मोल न तोल

बच्चों के सँग हम भी गाएँ
दीवाली का पर्व मनाएँ

बच्चो तुम से प्यारा कौन
तुम से अधिक दुलारा कौन

तुम सब हो भारत की शान
बिन तुमरे ना हिंद महान

देते हैं आशीष तुम्हें
सब कुछ देवें ईश तुम्हें

जग में रोशन नाम करो
कुछ ऐसा तुम काम करो

देख जमाना गर्व करे
हाथ तुम्हारे शीश धरे

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

नव-गीत: ज्योति जला जगमग - नवीन

ज्योति जला जगमग.............

पर्व प्रकाश पुंज का आया
बाल-अबाल हृदय हरषाया
नर-नारी सब चहक रहे हैं
बन के नभ के खग...............
ज्योति जला जगमग

मालपुआ, बरफी, रसगुल्ला
बम्ब, पटाखे - खुल्लमखुल्ला
हर दुकान पर भाँति भाँति के
सजे हुए हैं नग.............
ज्योति जला जगमग

तम-प्रकाश का साथ पुरातन
सुख-दुख का मेला है जीवन
ध्यान रहे जब कष्ट पड़े तो
कदम न हों डगमग................
ज्योति जला जगमग

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

5 नवंबर 2010

उपमा, श्लेष और अनुप्रास अलंकार युक्त दोहे

अनुप्रास:
सुखद, सरस, सदगुण सना, शुभ्र, सुसंस्कृत, सार|
सत्य, सुरम्य, सुहावना, दीपों का त्यौहार||

यहाँ 'स' अक्षर के बार बार आने से अनुप्रास अलंकार होता है|

श्लेषालंकार:
सीधी चलते राह जो, रहते सदा निशंक|
जो करते विप्लव, उन्हें, 'हरि' का है आतंक||

यहाँ 'हरि' शब्द के दो अर्थ होने से श्लेषालंकार बनता है|
पहला अर्थ: नारायण / ईश्वर
दूसरा अर्थ: बंदर

उपमा अलंकार:
घी घटता ही जाय ज्यों, बाती जलती जाय|
नव यौवन सी झूमती, दीपाशिखा बल खाय||

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद - घनाक्षरी कवित्त - नवीन

सांगोपांग सिंहावलोकन छंद
घनाक्षरी कवित्त

कवित्त का विधान
टोटल ४ पंक्तियाँ
हर पंक्ति ४ भागों / चरणों में विभाजित
पहले, दूसरे और तीसरे चरण में ८ वर्ण
चौथे चरण में ७ वर्ण, १६+१५ भी चलता है।
इस तरह हर पंक्ति में ३१ वर्ण

सिंहावलोकन का विधान
कवित्त के शुरू और अंत में समान शब्द
जैसे प्रस्तुत कवित्त शुरू होता है "लाए हैं" से और समाप्त भी होता है "लाए हैं" से

सांगोपांग विधान
ये मुझे प्रात:स्मरणीय गुरुवर स्व. श्री यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम' जी ने बताया कि छंद के अंदर भी हर पंक्ति जिस शब्द / शब्दों से समाप्त हो, अगली पंक्ति उसी शब्द / शब्दों से शुरू हो तो छंद की शोभा और बढ़ जाती है| वो इस विधान के छंन्द को सांगोपांग सिंहावलोकन छंद कहते थे|


कवित्त:
लाए हैं बाजार से दीप भाँति भाँति के हम,
द्वार औ दरीचों पे कतार से सजाए हैं|
सजाए हैं बाजार हाट लोगों ने, जिन्हें देख-
बाल बच्चे खुशी से फूले ना समाए हैं|
समाए हैं संदेशे सौहार्द के दीपावली में,
युगों से इसे हम मनाते चले आए हैं|
आए हैं जलाने दीप खुशियों के जमाने में,
प्यार की सौगात भी अपने साथ लाए हैं||


:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

लयात्मक अतुकान्त आधुनिक कविता - नवीन

जगमग जगमग
जग सारा
और रोशन है
हर द्वार
गली बाजार सजे सँवरे दिखते
चहुँ ओर

दैदीप्यमान
मानव संस्कृति ने रचे
अनेकों पर्व
दिवाली है उन में से एक

युगों युगों से
दीवाली के दिन सब
पूजा करते हैं
धन की देवी
पद्मासन पे आसीन
विष्णु की प्रिया
यशस्वी लक्ष्मी की

कहीं रोशनी
कहीं अंधेरा
ये भी है सच
अंधी दौड़ लगाती
विनिर्दिष्ट
आज की
आदमख़ोर
व्यवस्था का

फिर भी
ग्लास भरा आधा
कहना ही
ये
होगा हितकर
हम सबके लिए
सकारात्मक
परिणामों
की अभिलाषा में

आओ यार
चलो कुछ नया गढ़ें
कुछ नया करें
कुछ अभिनव हो
उत्साह भरें
उन सब के मन में
जो हैं पड़े हुए
कब से ही
छिटके हुए
निराश्रय
दूर
हाशिए पर
तन्हा

गर ऐसा हो पाये
तो ये कोशिस
होगी सफल
हमारा सपना होगा पूर्ण
हमें आनंद आयगा बहुत
एक नव युग का होगा सूत्रपात
धरती को भी होगा गुमान
अपनी जननी का कर्ज़
बहुत जो नहीं
तो थोड़ा तो
उतार पाएँगे हम

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

हाइकु - दीपावली - नवीन

ऊँचे भवनों
पर सजे दीपक
लगें तारों से|१|

लाते थे हम
बमों के साथ साथ
हटरी, कभी|२|

बिकने लगे
शहरों में अब तो
मानव बम |३|

:- नवीन सी. चतुर्वेदी