6 अगस्त 2016

भटक न जाये कहीं और ये दिले-रौशन - नवीन

भटक न जाये कहीं और ये दिले-रौशन
ज़रा इधर भी नज़र डाल मञ्ज़िले-रौशन
सियाह-शब में सफ़ीने कहाँ-कहाँ भटके
ये जानता ही कहाँ है वो साहिले-रौशन
उजास भरते हैं लम्हों में फ़ैसले इस के
तभी तो वक़्त को कहते हैं आदिले-रौशन
तमाम उम्र सियापों से क्यों उजाली जाय
जहाँ में और भी तो हैं मसाइले-रौशन
हमें नहीं तो किसी और को मिले मौक़ा
किसी के काम तो आये ये महफ़िले-रौशन
नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़इलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22


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