1 जून 2014

साहित्यम् - वर्ष 1 - अङ्क 5 - जून' 2014

सम्पादकीय

परसों यानि 30 मई 2014 को दिल्ली में मौसम का सब से तेज़ तापमान रिकार्ड होने के बाद वो आँधी चली कि उस की ख़बरें मुम्बई में भी साहित्यिक अंदाज़ में सुनने को मिलीं। कुछ रसिक मिजाज़ लोग गिरती-पड़ती चीज़ों के साथ ही साथ उड़ती चीज़ों का भी ज़िक्र कर रहे थे। जन-जीवन बहुत ही अस्त-व्यस्त हुआ, मगर क्या करें कुदरत पर किस का ज़ोर चला है भाई?

पिछला अङ्क पढ़ने के साथ ही हमारे एक वरिष्ठ साथी ने सन्देश दिया कि आप के सम्पादकीय में राजनीतिक चर्चा है इसलिये भविष्य में उन तक अङ्क न पहुँचाया जाये। मुझे नहीं लगता कि सर्वज्ञात समूह विशेष की तर्ज़ पर यह अन्तर्जालीय पत्रिका किसी वर्ग विशेष का समर्थन या विरोध करती है, फिर भी अग्रज की बात मान ली।

तमाम अनुमानों को झुठलाते हुये मोदी [बीजेपी नहीं] को अपार सफलता मिली और उन के शुरुआती दौर के चन्द फ़ैसले इस बात की गवाही दे रहे हैं कि मोदी जी पब्लिक से किये गये वायदों से मुकरने का जोख़िम नहीं उठायेंगे। मुझे नहीं लगता इतना भर लिखने से किसी को सर्वज्ञात समूह विशेष की तर्ज़ पर मोदी का अनुगामी मान लिया जाये।

दिन-ब-दिन तकनीक के बढ़ते उपयोग और नौजवानों की बढ़ती सहभागिता अच्छे परिणाम दिखला रही है। चार साल पहले जब फ़ेसबुक और फिर ब्लॉगर के मार्फ़त मैं ने अन्तरराष्ट्रीय अन्तर्जालीय साहित्यिक प्रासाद की चौखट पर क़दम रखे थे, तब दूर-दूर तक इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि इतने कम समय में इतने अधिक लोगों से जुड़ जाऊँगा। मगर यह सच अब हम सब के सामने है। अन्तर्जालीय प्रवृत्तियों को लगातार कोसने की बजाय हमें उन का सदुपयोग करने के बारे में सोचना ही श्रेयस्कर होगा। साथ ही किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह साहित्य में भी नौजवानों को परिश्रम करने की आदत डलवाने की ज़रूरत है। कभी-कभार सुनने में आता है कि उस्ताज़ लोग अपने-अपने शागिर्दों [पट्ठों] को ग़ज़ल-गीत-कविता वग़ैरह लिख कर दे देते हैं। यह प्रवृत्ति भले ही कितनी भी सदियों से क्यूँ न चली आ रही हो, मुझे तर्क-संगत कभी भी नहीं लगी। मेहनत-मशक़्क़त से बेहतर और कोई डगर हो ही नहीं सकती।

शेयर बाज़ार चढ़ रहा है, सोना गिर रहा है, प्रॉपर्टी वाले भी सहमे-सहमे हुये हैं। आने वाले महीनों में हमारे सामने कई अनपेक्षित परिस्थितियाँ उपस्थित होने की सम्भावनाएँ हैं। उमीद करता हूँ कि जन-साधारण को ज़ोर का हो या धीरे का, किसी भी तरह का झटका झेलना न पड़े।

इस अङ्क से साहित्यम के कुछ साथियों ने विभाग विशेष का उत्तरदायित्व आपस में बाँट लिया है। उन सभी साथियो के नाम और मोबाइल नम्बर शुरुआत में दिये गए हैं। कुछ अन्य भाषा-बोलियों से भी साथियों के सहयोग की दरकार है। हम सभी अवैतनिक स्वयं-सेवी हैं। पिछले दो-तीन हफ़्तों से लगातार सफ़र में होने के कारण इस अङ्क को बहुत ही कम समय दे पाया हूँ। भाषाई स्तर पर वाक्यों / शब्दों / अक्षरों को फिलहाल अपेक्षित समय नहीं दे पा रहा हूँ, परन्तु जल्द ही इस दिशा में पहल करनी होगी। अच्छे साहित्य को अधिकतम साहित्य-रसिकों तक पहुँचाने के क्रम में साहित्यम्’ का अगला अङ्क आप के सामने प्रस्तुत है। पढ़ियेगाअन्य परिचित साहित्य-रसिकों को भी जोड़िएगा और आप के बहुमूल्य विचारों से अवश्य ही अवगत कराइयेगा। आप की राय बिना सङ्कोच के हम तक पहुँचाने की कृपा करें। 

आपका अपना
नवीन सी. चतुर्वेदी, 01 जून 2014

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साहित्यम्
अन्तरजालीय पत्रिका /   सङ्कलक
वर्ष 1 - अङ्क 5 - जून 2014

विवेचना 
मयङ्क अवस्थी - 07897716173

छन्द विभाग
आ. सञ्जीव वर्मा 'सलिल' - 9425183144

व्यंग्य विभाग
कमलेश पाण्डेय - 9868380502

कहानी विभाग
सोनी किशोर सिंह - 8108110152

राजस्थानी विभाग 
राजेन्द्र स्वर्णकार - 9314682626

भोजपुरी विभाग 
इरशाद खान सिकन्दर - 9818354784

अवधी विभाग 
धर्मेन्द्र कुमार सज्जन - 9418004272

विविध सहायता 
मोहनान्शु रचित - 9457520433
ऋता शेखर मधु


सम्पादन 
नवीन सी. चतुर्वेदी - 9967024593 


अनुक्रमाणिका










6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही शानदार अंक, अपनी रचना यहाँ पाकर सुखद अनुभूति हो रही है..........

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  2. दादा बिलकुल सही कहा आपने वैसे भी साहित्य अपने देशकाल से मुह नहीं मोड़ सकता। आपकी मुहब्बत अफजाई के लिए शुक्रिया
    (मोहनान्शु रचित),

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  3. आपका सम्पादकीय पढ़ा ,बहुत अच्छा लगा की आप सच लिखने का साहस रखते है। `साहित्यम् ' सफलता की ऊचाइयों की ओर निरंतर अग्रसर रहे....इन्ही शुभकामनाओं सहित ....
    डॉ रमा द्विवेदी

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  4. मोदी [बीजेपी नहीं] ...बिल्कुल सही...नई सरकार से नव भारत के निर्माण की आशा रखते हुए सम्पादक महोदय को बहुत बधाइयाँ...बहुत सुन्दर अङ्क है...पढ़ते हैं धीरे धीरे...विविध सहयोग में मेरा नाम दिख रहा है तो मार्गदर्शन के अनुसार काम करना होगा...सभी रचनाकारों को शुभकामनाएँ !!

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  5. बहुत सुन्दर अङ्क लगा मुझे
    राजनीति एक हिस्सा है ,उससे अछूता कोई कैसे रह सकता है
    सम्पादक महोदय को बहुत बहुत बधाइयाँ
    हार्दिक शुभकामनायें ...

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  6. आ. नवीन भाईसाहब
    सादर प्रणाम |
    बहुत सुन्दर अंक है |आ. शेलेन्द्र जी एवं अभिलाष जी के गीत मनभावन लगे ,सुना बहुत है पढ़ा पहली बार है | सलिल जी का छंद विषयक लेख भी काफ़ी ज्ञानवर्धक लगा | आंचलिक ग़ज़ले मीठी लगी |विविधता से भरपूर अंक के लिए आपको बधाई |सभी रचनाकारों को सादर बधाई |अगले अंक की प्रतीक्षा में -
    स्नेहाकांक्षी अनुज 'खुरशीद'

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