इतनी
शक्ति हमें देना दाता, मन का
विश्वास कमज़ोर हो न
हम
चलें नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो न..
हर
तरफ़ ज़ुल्म है, बेबसी
है, सहमा
सहमा-सा हर आदमी है
पाप
का बोझ बढता ही जाये, जाने
कैसे ये धरती थमी है
बोझ
ममता का तू ये उठा ले, तेरी
रचना का ये अँत हो न ... हम चलें नेक...
दूर
अज्ञान के हों अँधेरे, तू
हमें ज्ञान की रौशनी दे
हर
बुराई से बचते रहें हम, जितनी
भी दे भली ज़िन्दग़ी दे
बैर
हो न, किसी
का किसी से. भावना मन में बदले की हो न ... हम चलें नेक...
हम न
सोचें हमें क्या मिला है, हम ये
सोचें किया क्या है अर्पण
फूल
खुशियों के बाँटें सभी को सबका जीवन ही बन जाये मधुबन
अपनी
करुणा का जल तू बहाकर, करदे
पावन हरेक मन का कोना ... हम चलें नेक...
हम
अँधेरे मे हैं रौशनी दे, खो न
दें खुद को ही दुश्मनी से
हम
सज़ा पायें अपने किये की, मौत
भी हो तो सह लें खुशी से
कल जो
गुज़रा है फिर से न गुज़रे, आनेवाला
वो कल ऐसा हो न ... हम चलें नेक...
संसार
है इक नदिया, दुःख-सुख दो किनारे हैं
न
जाने कहाँ जाएँ, हम
बहते धारे हैं
चलते
हुए जीवन की, रफ़्तार
में इक लय है
इक
राग में इक सुर में, सँसार
की हर शय है
इक
तार पे गर्दिश में, ये
चाँद सितारे हैं
धरती
पे अम्बर की आँखों से बरसती है
इक
रोज़ यही बूँदें, फिर
बादल बनती हैं
इस
बनने बिगड़ने के दस्तूर में सारे हैं
कोई
भी किसी के लिए, अपना
न पराया है
रिस्श्ते
के उजाले में, हर
आदमी साया है
कुदरत
के भी देखो तो, ये
खेल पुराने हैं
है
कौन वो दुनिया में, न पाप
किया जिसने
बिन
उलझे काँतों से, हैं
फूल चुने किसने
बे-दाग नहीं कोई, यहाँ पापी सारे हैं
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