1 जून 2014

दो गीत - अभिलाष



इतनी शक्ति हमें देना दातामन का विश्वास कमज़ोर हो न
हम चलें नेक रस्ते पे हमसे भूल कर भी कोई भूल हो न..

हर तरफ़ ज़ुल्म हैबेबसी हैसहमा सहमा-सा हर आदमी है
पाप का बोझ बढता ही जायेजाने कैसे ये धरती थमी है
बोझ ममता का तू ये उठा लेतेरी रचना का ये अँत हो न ... हम चलें नेक...

दूर अज्ञान के हों अँधेरेतू हमें ज्ञान की रौशनी दे
हर बुराई से बचते रहें हमजितनी भी दे भली ज़िन्दग़ी दे
बैर हो नकिसी का किसी से. भावना मन में बदले की हो न ... हम चलें नेक...

हम न सोचें हमें क्या मिला हैहम ये सोचें किया क्या है अर्पण
फूल खुशियों के बाँटें सभी को सबका जीवन ही बन जाये मधुबन
अपनी करुणा का जल तू बहाकरकरदे पावन हरेक मन का कोना ... हम चलें नेक...

हम अँधेरे मे हैं रौशनी देखो न दें खुद को ही दुश्मनी से
हम सज़ा पायें अपने किये कीमौत भी हो तो सह लें खुशी से
कल जो गुज़रा है फिर से न गुज़रेआनेवाला वो कल ऐसा हो न ... हम चलें नेक...




संसार है इक नदियादुःख-सुख दो किनारे हैं
न जाने कहाँ जाएँहम बहते धारे हैं

चलते हुए जीवन कीरफ़्तार में इक लय है
इक राग में इक सुर मेंसँसार की हर शय है
इक तार पे गर्दिश मेंये चाँद सितारे हैं

धरती पे अम्बर की आँखों से बरसती है
इक रोज़ यही बूँदेंफिर बादल बनती हैं
इस बनने बिगड़ने के दस्तूर में सारे हैं

कोई भी किसी के लिएअपना न पराया है
रिस्श्ते के उजाले मेंहर आदमी साया है
कुदरत के भी देखो तोये खेल पुराने हैं

है कौन वो दुनिया मेंन पाप किया जिसने
बिन उलझे काँतों सेहैं फूल चुने किसने
बे-दाग नहीं कोईयहाँ पापी सारे हैं


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