1 जून 2014

अवधी गजल - आपनि भासा आपनि बानी अम्मा हैं - अशोक अज्ञानी

अवधी गजल

आपनि भासा आपनि बानी अम्मा हैं।
भूली बिसरी कथा कहानी अम्मा हैं।

धरी हुवैं दालान म जइसे बेमतलब,
गठरी फटही अउर पुरानी अम्मा हैं।

नीक लगै तौ धरौ, नहीं तौ फेंकि दियौ,
घर का बासी खाना – पानी अम्मा हैं।

मुफत म माखन खाँय घरैया सबै, मुला
दिन भर नाचैं एकु मथानी अम्मा हैं।

पूरे घरु क भारु उठाये खोपड़ी पर,
जस ट्राली मा परी कमानी अम्मा हैं।

जाड़ु, घामु, बरखा ते रच्छा कीन्ह करैं,
बरहौं महिना छप्पर-छानी अम्मा हैं।

लरिका चाहे जेतना झगड़ा रोजु करैं,
लरिकन ते न कबौ-रिसानी अम्मा हैं।

ना मानौ तौ पिछुवारे की गड़ही हैं,
मानौ तौ गंगा महरानी अम्मा हैं।

‘अग्यानी’ न कबौ जवानी जानि परी,
बप्पा ते पहिलहै बुढ़ानी अम्मा हैं।

__ कवि अशोक ‘अग्यानी’

सौजन्य - धर्मेन्द्र कुमार सज्जन


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