गीत - बात की बात में क्या हुआ है हमैं - मोनी गोपाल ‘तपिश

बात की बात में क्या हुआ है हमैं 
शब्द धन चुक गया  - साँस अवरूद्ध है !

शहर सम्बन्ध का - तोड़ता ही रहा 
भाव से भाव मन - जोड़ता ही रहा 
नेह की आस मन - में समोए रहे 
प्रीत का ये नमन - ये चलन शुद्ध है !

कितने क़िस्से कहे - कितनी बातें बनीं 
गान तो थे पुरातन - नई धुन चुनीँ 
चाँदनी की तरह - हम सरसते रहे 
सूर्य हमसे इसी - बात पर क्रुद्ध है !

कितनी टूटन सही - कितने ताने सहे 
नेह की छॉंव से - हम अजाने रहे 
फिर किसी पीर ने हमको समझा दिया 
नेह ही कृष्ण है - नेह हीं बुद्ध है !

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