इतनी
भीड़ में तेरा चेहरा अच्छा लगता है
बीच
समन्दर एक जज़ीरा अच्छा लगता है
मुद्दत
गुज़री आज अचानक याद आए हो तुम
गहरी
रात के बाद सवेरा अच्छा लगता है
तुमने
अता फ़र्माया है सो मुझको है प्यारा
वर्ना
किसको दिल में शरारा अच्छा लगता है
मैं
तेरे दिल का तालिब और दैरो-हरम के वो
मुझको
दरिया उनको किनारा अच्छा लगता है
सौदाई, पागल, आवारा, दीवाना, मजनूं
तुमने
मुझको जो भी पुकारा अच्छा लगता है
तेरी
रानाई से आँखें जाग उठीं जब से
तब से
मुझको आलम सारा अच्छा लगता है
जज़ीरा=टापू।
शरारा=अंगारा। तालिब=चाहने वाला।
दैरो-हरम=मंदिर-मस्जिद।
रानाई=रोशनी/चमक।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें