इतनी भीड़ में तेरा चेहरा अच्छा लगता है - मुकेश आलम



इतनी भीड़ में तेरा चेहरा अच्छा लगता है
बीच समन्दर एक जज़ीरा अच्छा लगता है

मुद्दत गुज़री आज अचानक याद आए हो तुम
गहरी रात के बाद सवेरा अच्छा लगता है

तुमने अता फ़र्माया है सो मुझको है प्यारा
वर्ना किसको दिल में शरारा अच्छा लगता है

मैं तेरे दिल का तालिब और दैरो-हरम के वो
मुझको दरिया उनको किनारा अच्छा लगता है

सौदाईपागलआवारादीवानामजनूं
तुमने मुझको जो भी पुकारा अच्छा लगता है

तेरी रानाई से आँखें जाग उठीं जब से
तब से मुझको आलम सारा अच्छा लगता है

जज़ीरा=टापू। शरारा=अंगारा। तालिब=चाहने वाला।
दैरो-हरम=मंदिर-मस्जिद। रानाई=रोशनी/चमक।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.

विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.