हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें
हम दर्द के सुर में गाते हैं
जब हद से गुज़र जाती है ख़ुशी
आँसू भी छलकते आते हैं
हैं सबसे मधुर...
काँटों में खिले हैं फूल हमारे
रंग भरे अरमानों के
नादान हैं जो इन काँटों से
दामन को बचाए जाते हैं
हैं सबसे मधुर...
जब ग़म का अन्धेरा घिर आए
समझो के सवेरा दूर नहीं
हर रात का है पैगाम यही
तारे भी यही दोहराते हैं
हैं सबसे मधुर...
पहलू में पराए दर्द बसा के
हँसना हँसाना सीख ज़रा
तूफ़ान से कह दे घिर के उठे
हम प्यार के दीप जलाते हैं
हैं सबसे मधुर...
हर
ज़ोर जुल्म की टक्कर में, हड़ताल
हमारा नारा है !
तुमने माँगे ठुकराई हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा
छीनी हमसे सस्ती चीज़ें, तुम छंटनी पर हो आमादा
तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
मत करो बहाने संकट है, मुद्रा-प्रसार इंफ्लेशन है
इन बनियों चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कन्सेशन है
बगलें मत झाँको, दो जवाब क्या यही स्वराज्य तुम्हारा है?
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
मत समझो हमको याद नहीं हैं जून छियालिस की रातें
जब काले-गोरे बनियों में चलती थीं सौदों की बातें
रह गई ग़ुलामी बरकरार हम समझे अब छुटकारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !
क्या धमकी देते हो साहब, दमदांटी में क्या रक्खा है
वह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रज़ों ने भी तो चक्खा है
दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
समझौता ? कैसा समझौता ? हमला तो तुमने बोला है
महंगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है
हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर हड़ताल हमारा नारा है !
अब संभले समझौता-परस्त घुटना-टेकू ढुलमुल-यकीन
हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन
जो रोकेगा वह जाएगा, यह वह तूफ़ानी धारा है
हर ज़ोर जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है !
भगतसिंह ! इस बार न लेना काया
भारतवासी की,
देशभक्ति
के लिए आज भी सज़ा मिलेगी फाँसी की !
यदि
जनता की बात करोगे, तुम
गद्दार कहाओगे--
बम्ब
सम्ब की छोड़ो, भाषण
दिया कि पकड़े जाओगे !
निकला
है कानून नया, चुटकी
बजते बँध जाओगे,
न्याय
अदालत की मत पूछो, सीधे
मुक्ति पाओगे,
काँग्रेस
का हुक्म; ज़रूरत
क्या वारंट तलाशी की !
मत
समझो, पूजे
जाओगे क्योंकि लड़े थे दुश्मन से,
रुत
ऐसी है आँख लड़ी है अब दिल्ली की लंदन से,
कामनवैल्थ
कुटुम्ब देश को खींच रहा है मंतर से--
प्रेम
विभोर हुए नेतागण, नीरा
बरसी अंबर से,
भोगी
हुए वियोगी, दुनिया
बदल गई बनवासी की !
गढ़वाली
जिसने अँग्रेज़ी शासन से विद्रोह किया,
महाक्रान्ति
के दूत जिन्होंने नहीं जान का मोह किया,
अब भी
जेलों में सड़ते हैं, न्यू-माडल
आज़ादी है,
बैठ
गए हैं काले, पर
गोरे ज़ुल्मों की गादी है,
वही
रीति है, वही
नीति है, गोरे
सत्यानाशी की !
सत्य
अहिंसा का शासन है, राम-राज्य
फिर आया है,
भेड़-भेड़िए
एक घाट हैं, सब
ईश्वर की माया है !
दुश्मन
ही जब अपना, टीपू
जैसों का क्या करना है ?
शान्ति
सुरक्षा की ख़ातिर हर हिम्मतवर से डरना है !
पहनेगी
हथकड़ी भवानी रानी लक्ष्मी झाँसी की !
मुझको
भी इंग्लैंड ले चलो, पण्डित
जी महराज,
देखूँ
रानी के सिर कैसे धरा जाएगा ताज !
बुरी
घड़ी में मैं जन्मा जब राजे और नवाब,
तारे
गिन-गिन बीन रहे थे अपने टूटे ख़्वाब,
कभी न
देखा हरम, चपल
छ्प्पन छुरियों का नाच,
कलजुग
की औलाद, मिली
है किस्मत बड़ी ख़राब,
दादी
मर गई, कर गई
रूप कथा से भी मुहताज !
तुम
जिनके जाते हो उनका बहुत सुना है नाम,
सुनता
हूँ, उस एक
छत्र में कभी न होती शाम,
काले, पीले, गोरे, भूरे, उनके अनगिन दास,
साथ
किसी के साझेदारी औ' कोई
बेदाम,
ख़ुश
होकर वे लोगों को दे देती हैं सौराज !
उनका
कामनवैल्थ कि जैसे दोधारी तलवार,
एक
वार से हमें जिलावें , करें
एक से ठार,
घटे
पौण्ड की पूँछ पकड़ कर रुपया माँगे भीख,
आग
उगलती तोप कहीं पर, कहीं
शुद्ध व्यापार,
कहीं
मलाया और कहीं सर्वोदय सुखी समाज !
रूमानी
कविता लिखता था सो अब लिखी न जाए,
चारों
ओर अकाल, जिऊँ
मैं कागद-पत्तर खाय?
मुझे
साथ ले चलो कि शायद मिले नई स्फूर्ति,
बलिहारी
वह दॄश्य, कल्पना
अधर-अधर लहराए--
साम्राज्य
के मंगल तिलक लगाएगा सौराज !
टीन
कनस्तर पीट-पीट कर गला फाड़ कर चिल्लाना
यार
मेरे मत बुरा मान ये गाना है न बजाना है
नाच
के बदले कमर नचाना उछल के सर्कस दिखलाना
भूल
है तेरी तू समझा है दुनिया पागलखाना है
उधर
से लेकर इधर जमा कर कब तक काम चलाओगे
किसका
रहा ज़माना इक दिन महफ़िल से उठ जाओगे
नकल
का धंधा चल नहीं सकता इक दिन तो पछताना है
भूल
गया तू तानसेन की तान यही पर गूँजी थी
सुर
के जादूगर बैजू की शान यहीं पर गूँजी थी
मर के
अमर है सहगल उसका हर कोई दीवाना है
अमर गीतकार शैलेन्द्र को सादर वन्दन सहित
शैलेन्द्र किसी भी तथाकथित साहित्यिक कवि से बड़े कवि हैं... जन जन के कवि।
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