1 जून 2014

राजस्थानी गजल - राजेन्द्र स्वर्णकार


हवा में ज़ैर रळग्यो , सून सगळां गांव घर लागै
अठीनैं कीं कसर लागै , बठीनैं कीं कसर लागै

शकल सूं नीं पिछाणीजै इणां री घात मनड़ै री
किंयां अळगां री ठा' जद कै , न नैड़ां री ख़बर लागै

कठै ऐ पूंछ हिलकावै , कठै चरणां में लुट जावै
ऐ मुतळब सूं इंयां डोलै , कॅ ऐ डुलता चंवर लागै

किचर न्हाखै मिनख - ढांढा  चलावै कार इण तरियां
सड़क ज्यूं बाप री इणरै ; ऐ नेतां रा कुंवर लागै

निकळ' टीवी सूं घुसगी नेट में आ , आज री पीढ़ी
बिसरगी संस्कृती अर सभ्यता , जद श्राप वर लागै

अठै रै सूर सूं मिलतो जगत नैं चांनणो पैलां
अबै इण देश , चौतरफै धुंवो कळमष धंवर लागै

जगत सूं जूझसी राजिंद , कलम ! सागो निभा दीजे
कथां रळ' साच , आपांनैं किस्यो किण सूं ई डर लागै

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* राजस्थानी ग़ज़ल में प्रयुक्त शब्दों के अर्थ *

ज़ैर रळग्यो = ज़हर घुल गया /, सून = सुनसान /, सगळां = समस्त् /, लागै = लगता है – लगती है - लगते हैं /, अठीनैं = इधर /, बठीनैं = उधर /, कीं = कुछ, नीं पिछाणीजै = नहीं पहचानी जाती है /, इणां री = इनकी /, घात मनड़ै री = मन की घात /, किंयां = कैसे /, अळगां री = दूरस्थ की /, ठा' = मा'लूम - जानकारी होना /, नैड़ां री = समीपस्थ की /, कठै = कहीं - कहां /, ऐ = ये /, डुलता चंवर = गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथसाहिब तथा मंदिर में ठाकुरजी के आगे डुलाया जाने वाला चंवर, किचर न्हाखै = कुचल देते हैं /, मिनख - ढांढा = मनुष्य - पशु /, जद = तब /, अठै रै सूर सूं = यहां के सूर्य से /, चांनणो = प्रकाश /, पैलां = पहले /, चौतरफै = चारों तरफ़ /, धुंवो कळमष धंवर = धुआं कल्मष धुंध /, सागो निभा दीजे = साथ निभा देना /, कथां रळ' साच = मिल कर सत्य - सृजन करें /, आपांनैं = हमको - हमें /, किस्यो किण सूं ई = कौनसा किसी से भी /


राजेन्द्र स्वर्णकार
9414682626


बहरे हजज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222


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