1 जून 2014

3 भोजपुरी गजलें - मनोज भावुक




जिनिगी पहाड़ जइसन लागे कबो-कबो
सुखला में बाढ़ जइसन लागे कबो-कबो

कुछुओ कहाँ बा आपन, झूठो के बा भरम
साँसो उधार जइसन लागे कबो-कबो

सभकर बा हाथ पसरल मंदिर में देखलीं
दुनिया भिखार जइसन लागे कबो-कबो

डोली ई देह लागे, दुलहिन ई आत्मा
जिनिगी कँहार जइसन लागे कबो-कबो

होखे महल या मड़ई पर प्यार के बिना
सगरो उजार जइसन लागे कबो-कबो

जहिया से नेह लागल ‘भावुक’ के गीत से
नफरत दुलार जइसन लागे कबो-कबो


अबकी दियरी के परब अइसे मनावल जाये
मन के अँगना में एगो दीप जरावल जाये

रोशनी गाँव में, दिल्ली से ले आवल जाये
कैद सूरज के अब आजाद करावल जाये

हिन्दू, मुसलिम ना, ईसाई ना, सिक्ख, ए भाई
अपना औलाद के इंसान बनावल जाये

जेमें भगवान, खुदा, गौड सभे साथ रहे
एह तरह के एगो देवास बनावल जाये

रोज़ दियरी बा कहीं, रोज़ कहीं भूखमरी
काश ! दुनिया से विषमता के मिटावल जाये

सूप, चलनी के पटकला से भला का होई
श्रम के लाठी से दलिद्दर के भगावल जाये

लाख रस्ता हो कठिन ,लाख दूर मंजिल हो
आस के फूल हीं आँखिन मे उगावल जाये

जेकरा यादन में जले दिल के दिया के बाती
ए सखी, अब ओही ‘भावुक’ के बोलावल जाये





नया-नया संसार में बानी सात समुन्दर पार
बाकिर हियरा मे बाटे, इहवों तहरे संसार

जिन्दा रखिहऽ अपना मन में हमरा खातिर प्यार
हम दुनिया मे आइब तहरा खातिर सौ-सौ बार

रोक ना लेबे हमरा के केहू के छलकत आँख
चलनी तऽ पीछे मुड़ के देखनी ना एको बार

एगो राजकुमारी के अक्सर आवत बा फोन
कब ले अइबऽ लौट के बोलऽ-बोलऽ राजकुमार

मजबूरी में हीं छिछियाला केहू देश-विदेश
ना तऽ सभका भावे अपना घर के रोटी यार

ए-बबुआ नइखे हमरा पाउण्ड-डालर के काम
रहऽ आँख के सोझा हरदम माई कहे हमार

मनोज भावुक
9971955234

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