0581 541004
कर
दिए लो आज गंगा में प्रवाहित
सब
तुम्हारे पत्र, सारे
चित्र, तुम
निश्चिन्त रहना
धुंध
डूबी घाटियों के इंद्रधनु तुम
छू गए
नत भाल पर्वत हो गया मन
बूंद
भर जल बन गया पूरा समंदर
पा
तुम्हारा दुख तथागत हो गया मन
अश्रु
जन्मा गीत कमलों से सुवासित
यह
नदी होगी नहीं अपवित्र, तुम निश्चिन्त रहना
दूर
हूँ तुमसे न अब बातें उठें
मैं
स्वयं रंगीन दर्पण तोड़ आया
वह
नगर, वे राजपथ, वे
चौंक-गलियाँ
हाथ
अंतिम बार सबको जोड़ आया
थे
हमारे प्यार से जो-जो सुपरिचित
छोड़
आया वे पुराने मित्र, तुम
निश्चिंत रहना
लो
विसर्जन आज वासंती छुअन का
साथ
बीने सीप-शंखों का विसर्जन
गुँथ
न पाए कनुप्रिया के कुंतलों में
उन
अभागे मोर पंखों का विसर्जन
उस
कथा का जो न हो पाई प्रकाशित
मर
चुका है एक-एक चरित्र, तुम
निश्चिंत रहना
धर
गये मेंहदी रचे दो हाथ
जल
में दीप
जन्म
जन्मों ताल सा हिलता रहा मन
बांचते
हम रह गये अन्तर्कथा
स्वर्णकेशा
गीतवधुओं की व्यथा
ले
गया चुनकर कमल कोई हठी युवराज
देर
तक शैवाल सा हिलता रहा मन
जंगलों
का दुख, तटों
की त्रासदी
भूल, सुख से सो गयी कोई नदी
थक
गयी लड़ती हवाओं से अभागी नाव
और
झीने पाल सा हिलता रहा मन
तुम
गये क्या, जग हुआ
अंधा कुँआ
रेल
छूटी, रह गया
केवल धुँआ
गुनगुनाते
हम, भरी आँखों
फिरे सब रात
हाथ
के रूमाल सा हिलता रहा मन
सौजन्य
: मोहनान्शु रचित
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जवाब देंहटाएंकिशन दादा को जब भी पढ़ता हूँ हर बार उनके गीत नए लगते हैं नितांत मौलिक प्रतीक अद्भुत बिम्ब क्या कहने
जवाब देंहटाएंभाई किशन सरोज के दोनों गीत बहुश्रुत और पूर्वपरिचित हैं एवं श्रेष्ठ गीतकविता की बानगी देते हैं| आपको और 'रचनाकार' को मेरा हार्दिक अभिनन्दन इन गीतों को शामिल करने के लिए|
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