बिहारी
[बिहारी सतसई वाले नहीं]
आज
सपने में सेज साँवरौ मिल्यौ री मोहि
लीन्ही
अङ्क आनि, सबै
कानि-कुल गई री
मोहन
मुदित मो सों मन की करन लाग्यौ
मदन-मनोरथ
पै मैं हू तुल गई री
क़हत ‘बिहारी’ जो थी होनी, सो न होन पाई
का
कहों कैसें कहों री बुद्धि डुल गई री
अङ्ग
खुल गये, रति-रङ्ग
खुल गये, नीबी –
बन्ध
खुल गये, तौ लौं
आँख खुल गई री
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