अवधी गजल
आपनि भासा आपनि बानी अम्मा हैं।
भूली बिसरी कथा कहानी अम्मा हैं।
धरी हुवैं दालान म जइसे बेमतलब,
गठरी फटही अउर पुरानी अम्मा हैं।
नीक लगै तौ धरौ, नहीं तौ फेंकि दियौ,
घर का बासी खाना – पानी अम्मा हैं।
मुफत म माखन खाँय घरैया सबै, मुला
दिन भर नाचैं एकु मथानी अम्मा हैं।
पूरे घरु क भारु उठाये खोपड़ी पर,
जस ट्राली मा परी कमानी अम्मा हैं।
जाड़ु, घामु, बरखा ते रच्छा कीन्ह करैं,
बरहौं महिना छप्पर-छानी अम्मा हैं।
लरिका चाहे जेतना झगड़ा रोजु करैं,
लरिकन ते न कबौ-रिसानी अम्मा हैं।
ना मानौ तौ पिछुवारे की गड़ही हैं,
मानौ तौ गंगा महरानी अम्मा हैं।
‘अग्यानी’ न कबौ जवानी जानि परी,
बप्पा ते पहिलहै बुढ़ानी अम्मा हैं।
__ कवि अशोक ‘अग्यानी’
सौजन्य - धर्मेन्द्र कुमार सज्जन
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