मेरे
रुतबे में थोड़ा इज़ाफ़ा हो गया है
अजब
तो था मगर अब अजूबा हो गया है
अब
अहलेदौर इस को तरक़्क़ी ही कहेंगे
जहाँ
दगरा था वाँ अब खरञ्जा हो गया है
छबीले
तेरी छब ने किया है ऐसा जादू
क़बीले
का क़बीला छबीला हो गया है
वो
ठहरी सी निगाहें भला क्यूँ कर न ठुमकें
कि उन
का लाड़ला अब कमाता हो गया है
अजल
से ही तमन्ना रही सरताज लेकिन
तलब
का तर्जुमा अब तमाशा हो गया है
तेरे
ग़म की नदी में बस इक क़तरा बचा था
वो
आँसू भी बिल-आख़िर रवाना हो गया है
न कोई
कह रहा कुछ न कोई सुन रहा कुछ
चलो
सामान उठाओ इशारा हो गया है
नवीन
सी. चतुर्वेदी
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