महेश
दुबे
मैं गंगा
बोल रही हूँ मै यमुना बोल रही हूँ
मेरे तट पर
बसने वालों
मैं तुमको
तोल रही हूँ
मैं गंगा
बोल रही हूँ मै यमुना बोल रही हूँ
मेरे तट पर
बसने वालों
तुमने मुझको
बर्बाद किया
उस धरती को
भी ना छोड़ा
जिसने तुमको
आबाद किया
माता का
आंचल फाड़ दिया
उसका भी ना
सम्मान किया
जिस वक्ष से
दूध पिया तुमने
उसको ही लहू
लुहान किया
लो जखम गिनो
मैं सम्मुख
अपनी छाती खोल रही हूँ
मैं गंगा
बोल रही हूँ मै यमुना बोल रही हूँ
मेरे तट पर
जो भी आता
उसको न कभी
मैंने छाँटा
ना
जाति धर्म का भेद किया
सबको अपना
अमृत बांटा
हैं हिन्दू
यहाँ हर हर करते
मुस्लिम भी
मेरा गान करें
उन सबको
तृप्त करूँ मैं जो
श्रद्धा से
मेरा पान करें
मैं युगों
युगों से
कण्ठों में
निज अमृत घोल रही हूँ
मैं गंगा
बोल रही हूँ मै यमुना बोल रही हूँ
मुझमे पूजन
का शंखनाद
मुझमें
इस्लामी एकवाद
मेरे बेटे
होकर के तुम
ना जाने
करते क्यों विवाद
मुझको
ईसा से बैर नहीं
जो करते
उनकी खैर नहीं
जितने भारत
के बेटे हैं
सब अपने कोई
गैर नहीं
तुम कीचड
में क्यों धंसते?
मुझको देखो
ड़ोल रही हूँ
मैं गंगा
बोल रही हूँ मै यमुना बोल रही हूँ
मैं हूँ
भारत की आन-बान
मुझसे ही है
भारत महान
मेरे तट आये
राम-कृष्ण
तुलसी भी
गाते रहे गान
मैंने धरती
को शुद्ध किया
पर तुमने
इतना युद्ध किया
मेरे जल में
शोणित डाला
मुझको भी
परम अशुद्ध किया
अब नाला हूँ, पर, कल तक,
जनगणमन कल्लोल
रही हूँ
मैं गंगा
बोल रही हूँ मै यमुना बोल रही हूँ
मुझमें
शिवजी का तेज प्रबल
मैं भागीरथ
के मन का बल
जब
क्रोधोन्मत हो जाउंगी
सब तहस नहस
कर देगा जल
मुझपर ना
अत्याचार करो
कुछ माता का
उद्धार करो
कचरे की
ढेरी ड़ाल ड़ाल
ना दूषित जल
की धार करो
मत मोल
गिराओ मेरा – प्यारों -
मैं - अनमोल
रही हूँ
मैं गंगा
बोल रही हूँ मै यमुना बोल रही हूँ
महेश दुबे –
9869025184
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