आज
उन कम्बलों
को देख कर मेरी आँखों में आँसू आ गये
वे कम्बल
मुझे बहुत पसन्द थे
इसिलिये दो
खरीदे थे
परन्तु
जब ओढ़ने की
बारी आयी
आँखों के
सामने बेटा-नाती आ गये
उन दौनों के
बिस्तर में वे कम्बल पहुँच गये
हम बाकी
सदस्य
दूसरे
पुराने कम्बल ही ओढ़ लेते थे
उन्हीं में
गर्माहट महसूस कर लेते थे
वक़्त गुजरा
एक और नया
कम्बल आया
वह कम्बल
‘इन के’ बिस्तर पर पहुँचाया
तीनों नये
कम्बल बँट चुके थे
हमें पुराने
कम्बल ही चलेंगे – सोच कर
माँ-बेटी
चुप रह गये थे
ऐसा नहीं था
कि कुछ और
नये कम्बल खरीद नहीं सकते थे
परन्तु बढ़ते
सामान को देख कर
विचार बदल
देते थे
फिर बेटी ने
घर लिया
बेटी शिफ्ट
हो गयी
पुराने
कम्बलों की जोड़ी वाला कम्बल
घर में ही
था
सफ़ाई करते
वक़्त मेरे हाथ लगा
समय बीता
फिर बेटे ने
अपना घर बसाया
ख़ुशी-ख़ुशी
से
ख़ूब नया
सामान आया
मर्ज़ी से
दौनों बच्चे
अपने-अपने घरों में हैं
परन्तु मेरे
दिल को सूना कर गये
भरा-पूरा घर
तीन हिस्सों
में बस गया
माँ के दिल
से यही आवाज़ आयी
सब जहाँ भी
रहें
सुखी रहें
सन्तुष्ट
रहें
बेडरूम में
आयी
तो देखा कि
मैं और मेरे पति
बस हम दौनों
अकेले खड़े हैं
और हमारे
सामने
सारे कम्बल
पड़े हैं
यही है जीवन
की यात्रा
और ऐसी ही
होती हैं
जीवन की
उपलब्धियाँ
मैं रो नहीं
रही हूँ
बस गीली
पलकों को पौंछ रही हूँ
आप भी
रोइयेगा नहीं
: कामिनी
अग्रवाल
+91 9930718481
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