मोहनान्शु
रचित
बूझ-बूझ
उत्तर जो हुआ मैं निरुत्तर तो
देख मेरे
हाल को पहेली हँसने लगी
झुमका पहिन
कान, सुरमा लगा के नैन
जैसे कोई
दुल्हन नवेली हँसने लगी
भाग्य की
रेखा में तुझे ढूँढ-ढूँढ थक गया
व्यंग्य कर
मुझ पे हथेली हँसने लगी
बम-बम भोले
सङ्ग जैसे ही गूँजी अजान
ऐसा लगा जैसे कि बरेली हँसने लगी
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