रम्ज़ की राह
की रफ़्तार सम्हाले हुये हैं
वाक़ई आप तो बाज़ार
सम्हाले हुये हैं
हम से उठता ही
नहीं बोझ पराये ग़म का
हम तो बस अपने
ही विस्तार सम्हाले हुये हैं
एक दिन ख़ुद को
सजाना है तेरे ज़ख़्मों से
इसलिये सारे
अलंकार सम्हाले हुये हैं
आह, अरमान,
तलाश और तसल्ली का भरम
अपना सन्सार
यही चार सम्हाले हुये हैं
वो सुधर जायें
तो शुरूआत सुधरने की हो
अरबों-खरबों
को जो दो-चार सम्हाले हुये हैं
:- नवीन सी. चतुर्वेदी
बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणी करने के लिए 3 विकल्प हैं.
1. गूगल खाते के साथ - इसके लिए आप को इस विकल्प को चुनने के बाद अपने लॉग इन आय डी पास वर्ड के साथ लॉग इन कर के टिप्पणी करने पर टिप्पणी के साथ आप का नाम और फोटो भी दिखाई पड़ेगा.
2. अनाम (एनोनिमस) - इस विकल्प का चयन करने पर आप की टिप्पणी बिना नाम और फोटो के साथ प्रकाशित हो जायेगी. आप चाहें तो टिप्पणी के अन्त में अपना नाम लिख सकते हैं.
3. नाम / URL - इस विकल्प के चयन करने पर आप से आप का नाम पूछा जायेगा. आप अपना नाम लिख दें (URL अनिवार्य नहीं है) उस के बाद टिप्पणी लिख कर पोस्ट (प्रकाशित) कर दें. आपका लिखा हुआ आपके नाम के साथ दिखाई पड़ेगा.
विविध भारतीय भाषाओं / बोलियों की विभिन्न विधाओं की सेवा के लिए हो रहे इस उपक्रम में आपका सहयोग वांछित है. सादर.