30 नवंबर 2014

गीत - प्रवीण पाण्डेय

सहसा मन में घिर आयी, वो रात बिताने बैठा हूँ
तुमसे पाये हर सुख का अब मूल्य चुकाने बैठा हूँ

भावों का उद्गार प्रस्फुटित, आतुर मन के आँगन में,
मेघों का उपकार, सरसता नहीं छोड़ती सावन में,
जाने क्या ऊर्जा बहती थी, सब कुछ ही अनुकूल रहा,
वर्ष दौड़ते निकल गये मधु-स्मृतियों का स्रोत बहा, 
है कितना उपकार-जनित अधिकार, बताने बैठा हूँ,
तुमसे पाये हर सुख का अब मूल्य चुकाने बैठा हूँ ।
  
रम कर पथ के उपकरणों में मन उलझाये घूमे थे
निशा दिवस का ब्याह रचाते नित मदिराये झूमे थे
मगन इसी में, हम जीवन में आगे बढ़ना भूल गये,
कोमलता में घिरे रहे, निस्पृह हो  लड़ना भूल गये, 
उस अशक्त जीवन का विधिवत भार उठाने बैठा हूँ,
तुमसे पाये हर सुख का अब मूल्य चुकाने बैठा हूँ ।
  
मन की पर्तें भेद रहीं हैं, बातें जो थीं नहीं बड़ी,
कहीं समय में छिपी रही जो कर्तव्यों की एक लड़ी
अनजाने में, अनचाहे ही, रूठ गयी जिन रातों से,
नहीं याद जो रखनी चाहीं, चुभती उन सब बातों से, 
निर्ममता से बहे हृदय का रक्त सुखाने बैठा हूँ,
तुमसे पाये हर सुख का अब मूल्य चुकाने बैठा हूँ । 

सब कहते हैं, जीवन मैने, अपने ही अनुरूप जिया,
नहीं रहा संवेदित, न ही संबंधों को श्रेय दिया,
सत्य यही है, मन उचाट सा रहा सदा ही बन्धों में,
आत्मा मेरी ठौर न पाती, कृत्रिम तुच्छ प्रबन्धों में, 
निश्छल मन को पर समाज का सत्य सिखाने बैठा हूँ,
तुमसे पाये हर सुख का अब मूल्य चुकाने बैठा हूँ । 

उत्तर भी तो पाने थे जब प्रश्नों से लादा तुमने,
आधे से भी क्षीण रहा मैं - माँगा लिया आधा तुमने,
तुम बिन कुछ यों हूँ जैसे उड़ना चाहूँ पर पंख नहीं,
एकांत अन्ध गलियारों की भटकन का जैसे अंत नहीं, 
सो शान्तमना हो कर जीवन-बिखराव बचाने बैठा हूँ,
तुमसे पाये हर सुख का अब मूल्य चुकाने बैठा हूँ ।
  
हूँ कृतज्ञ सबका जिनसे भी कोई हित स्वीकार किया,
कुछ भी सीखा, जीवन में कैसे भी अंगीकार किया,
क्यूँ विरुद्ध होऊँ उन के, जो जीवन-पथ के ध्येय नहीं,
जो कहते हों – कहने दो - अब पाना कोई श्रेय नहीं, 
तरु सहिष्णु हूँ आज, अहं का बोझ हटाने बैठा हूँ,
तुमसे पाये हर सुख का अब मूल्य चुकाने बैठा हूँ ।





वह सुन्दर से भी सुन्दरतम,
वह ज्ञान सिन्धु का गर्भ-गहन,
वह विस्तृत जग का द्रव्य-सदन
वह यशो-ज्योति का उद्दीपन,

वह वन्दनीय, वह आराधन,
वह साध्य और वह संसाधन,
वह रत, नभ नत सा अभिवादन,
वह मुक्त, शेष का मर्यादन,

वह महातेज, वह कृपाहस्त,
वह ज्योति जगत, अनवरत स्वस्थ,
वह शान्त प्रान्त, वह सतत व्यस्त,
वह सुखद स्रोत, दुख सहज अस्त,

वह अनुशासन से पूर्ण मुक्ति,
वह द्वन्द्व परे, परिशुद्ध युक्ति,
वह मन तरंग, एकाग्र शक्ति,
वह प्रथम चरण, संपन्न भक्ति,

वह आदि, अन्त का वर्तमान,
सब कण राजे, फिर भी प्रधान,
वह प्रश्न, स्वयं ही समाधान,
वह आकर्षण शासित विधान,

वह प्रथम शब्द, वह प्रथम अज्ञ,
वह प्रथम नाद, वह प्रथम यज्ञ,
गुंजायमान प्रतिक्षण वन्दन,
है आनन्दित मेरा भगवन

वह सुन्दर से भी सुन्दरतम
वह सुन्दर से भी सुन्दरतम
वह सुन्दर से भी सुन्दरतम


: प्रवीण पाण्डेय - +91 9794843900

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