30 नवंबर 2014

व्यंग्य दऊआ पहलवान गली - आलोक पुराणिक

व्यंग्य

दऊआ पहलवान गली - आलोक पुराणिक

भद्र नाम था उस सड़क का -विद्यानिधि सर्वनाथ चंद्रालंकार मार्ग। पर सब उसे दऊआ पहलवान गली के नाम से ही जानते थे। दऊआ पहलवान स्थानीय गुंडे थे एक जमाने में, उनका नाम लेकर उस गली के शरीफ बाशिंदे पुलिस को डराते थे और नवोदित गुंडे दूसरे मुहल्ले के गुंडों को डराते थे। गली का आधिकारिक नाम यद्यपि चंद्रालंकारजी के नाम पर था, पर जन-जन में प्रसिद्धि दऊआ पहलवान की थी। गली उनके नाम पर चल रही थी। चंद्रालंकारजी के बहुत पढ़े-लिखे परिजन दऊआ पहलवान के खिलाफ भुनभुनाते हुए पाये जाते थे। पर भुनभुनाने से कुछ होता तो, तो बहुत कुछ गली में क्या, इस देश में ही हो गया होता।

मुझे समय़ में आया कि आधिकारिक तौर पर चाहे जो कर दो, होता वही है, जो दऊआ पहलवान की मर्जी होती है। गली की बात करो, तो बात देश तक पहुंच जाती है। क्षमा करेंगली-चौराहों के नाम पर लौटें। मेरे शहर में एक चौराहे का आधिकारिक नाम कारगिल में शहीद हुए कैप्टन के नाम पर रखा गया है। जौली नामक बंदा इस चौराहे पर छोले बेचा करता है। जन-जन में यह चौराहा जौली छोले चौराहे के नाम से प्रसिद्ध है। कारगिल का शहीद क्या करे। पब्लिक छोले में ही जौली हुए जा रही है। मैंने उस इलाके के विधायक से शिकायत की। मैंने कहा कि एक अभियान चलाकर पब्लिक को जौली छोले के बजाय शहीद का नाम लेने को प्रेरित किया जाये। इस इलाके में आने-जाने वाले पत्रों में चौराहे का शहीद आधारित आधिकारिक नाम ही लिखा जाये।

विधायक महोदय अपने असर का इस्तेमाल करें इस मामले में, तो छोलों की जगह शहीद का सम्मान कायदे से हो जायेगा। विधायकजी ने आफ दि रिकार्ड मुझे बताया कि शहीद कैप्टन उनकी जाति के नहीं हैं। शहीद की जाति के वोट उन विधायक को कभी नहीं मिलते, तो वह क्यों इस मसले पर रुचि लें। जैसा नाम चल रहा है, चलने दें-जौली छोले चौराहा।

मुझे समझ में आया कि शहीद भले ही किसी जाति के मान लिये जायें, पर छोले को जातियों से ऊपर माना जाता है। भारतवर्ष में छोलों की अपील शहीद की अपील से ज्यादा है।  ये भी समझ आया कि जाति  के हितैषी विधायक ही स्वजातीय बंधु की रक्षा कर सकते हैं। वरना तो शहादत भी छोलों में घुलकर गायब हो जाती है।

एक और शहर में शहर की मुख्य सड़क का नाम रखा गया-गैंदामल घी वाला मार्ग।

गैंदामलजी कुख्यात थे मिलावट के लिए। पर इससे क्या होता है। स्वजातीय बंधुओं का नगरपालिका में बहुमत था, मार्ग गैंदामल का हुआ। बाद में एक भ्रष्ट ठेकेदार ने इस नाम की मर्यादा रखी। गैंदामल मार्ग के निर्माण में सीमेंट में रेत की विकट मिलावट की। गैंदामलजी की आत्मा को शांति मिली होगी।

मार्गों, गलियों के नामों में विकट घोटाले हैं। पर उससे क्या होता है। देश चलाने में कित्ते घोटाले हैं, पर देश चल रहा है ना। मेरा सुझाव ये है कि जाति, धर्म वगैरह के विवादों में सड़कों, गलियों के नाम ना फंसाये जायें। सीधे सिंपल नाम रखे जायें, जैसे आयुर्वेद से नाम उधार ले लिये जायें। किसी सड़क का नाम रखा जाये-आंवला मार्ग। किसी सड़क का नाम रख दिया जाये-त्रिफला रोड। किसी गली का नाम रख दिया जाये-हर्र-बहेड़ा गली। पर नहीं, नहीं, विवाद प्रिय इस देश में कोई आयुर्वैदाचार्य उठकर कहेंगे कि नहीं आंवला गली के ठीक साथ वाली गली  का नाम त्रिफला गली नहीं रखा जा सकता है, क्योंकि मेरी सम्मति में आंवला के साथ त्रिफला का सेवन वर्जित है। कोई आयुर्वैदाचार्य यूं भी कह सकते हैं कि इस गली का नाम सुबह आंवला गली रखा जाये पर संध्या के बाद इस गली का नाम त्रिफला गली रहे, क्योंकि आंवले का सेवन सुबह ठीक रहता है और त्रिफला का सेवन संध्याकाल के बाद उचित परिणाम देता है। हाय हाय ।

छोड़िये, कई गली-मार्गों के नामों को दऊआ पहलवानों और छोलों के हवाले ही रखा जाये।


आलोक पुराणिक
मोबाइल-9810018799

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