30 नवंबर 2014

हँसते-हँसते गुजार देते हैं, हर गुजरते हुये समय के लोग - नवीन

हँसते-हँसते गुजार देते हैं
हर गुजरते हुये समय के लोग
ख़ामुशी को ज़ुबान देते हैं
शोर करते हुये समय के लोग

हम ने साहिल बनाये दरिया पर
और आतिश को फैलने न दिया
हाय! क्या-क्या समेट लेते थे
उस बिखरते हुये समय के लोग

ऐ तरक़्क़ी जवाब दे हम को
बोल किस-किस पे रड़्ग उँड़ेल आयी
इतना बेरड़्ग हो नहीं सकते
रड़्ग भरते हुये समय के लोग

जो भी उस पार उतर गये एक बार
फिर कभी लौट कर नहीं आये
तैरना भूल जाते हैं शायद
पार उतरते हुये समय के लोग

सूर तुलसी कबीर के किरदार
हम को ये ही सबक सिखाते हैं
ऊँची-ऊँची उड़ान भरते हैं
पर कतरते हुये समय के लोग

स्वर्ग जैसी वसुन्धरा अपनी
जाने कब की बना चुके होते
रोक लेते हैं एक तो हालात
और डरते हुये समय के लोग

बन्दगी सब से आला कोशिश है
और इबादत मशक़्क़ते-उम्दाह
इसलिये ही तो मस्त रहते हैं

रब सुमरते हुये समय के लोग

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 


बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22

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