30 नवंबर 2014

तुझ को तेरे ही ख़तावार सम्हाले हुये हैं - नवीन

तुझ को तेरे ही ख़तावार सम्हाले हुये हैं
दिल तेरी बज़्म को दिलदार सम्हाले हुये हैं

इश्क़ एक ऐसी अदालत है जिसे जनमों से
उस के अपने ही गुनहगार सम्हाले हुये हैं

जब भी गुलशन से गुजरता हूँ ख़याल आता है
बे-वफ़ाओं को वफ़ादार सम्हाले हुये हैं

तोड़ ही देती अदावत तो न जाने कब का
प्यार के तारों को फ़नकार सम्हाले हुये हैं

बीसियों लोग हैं घर-बार सम्हाले हुये और

बीसियों लोगों को घर-बार सम्हाले हुये हैं

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़इलातुन फ़इलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22

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