तुम जानना
चाहते हो मुझे ?
किस सीमा तक
यह
निर्धारित करना है तुम्हे ही
तुमने जाने
-अनजाने कितनी बार
सोचा है
मुझे !
कितनी उलझन
होती है
किसी को
सम्पूर्ण पाते हुए भी
अधूरा जानने
पर !
लोग बताते
हैं तुम्हे
जाने कितनी
ऐसी बातें
मेरे
व्यक्तित्व की जो तुम्हे मिली हैं
केवल सुनने
को,देखने जानने को नहीं !
सच यह है कि
मैं केवल अभिनेता हूँ
बोल सकता
हूँ केवल संवाद
जिनमे अभिनय
की गंध स्वाभाविक है
और तुम ?
तुम कलाकार
हो
आडम्बरयुक्त
बातों को भी
सहजता से कह
जाना
कि आभास तक
न हो आडम्बर का
विशेषता है
तम्हारी
कभी टटोलो
सवयं को
मुझे न
कुरेद कर
आवश्यक है
इस के लिए
तुम्हारे
कलाकार की मौत !
तुम पाओगे
मेरे संवाद
बदल गए हैं
अपनत्व में
तुम देखोगे
जितना तुम
जानते हो मुझे
शायद मैं भी नहीं जनता उतना सवयं को !
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