30 नवंबर 2014

व्यंग्य द ग्रेट इण्डियन वैडिंग तमाशा - नीरज बधवार

व्यंग्य

द ग्रेट इण्डियन वैडिंग तमाशा - नीरज बधवार

ये मेरे मित्र की मति का शहादत दिवस है। आज वो शादी कर रहा है। मैं तय समय से एक घंटे बाद सीधे विवाह स्थल पहुंचता हूं, मगर लोग बताते हैं कि बारात आने में अभी आधा घंटा बाकी है। मैं समझ गया हूं कि शादी पूरी भारतीय परम्परा के मुताबिक हो रही है।

तभी मेरी नज़र कन्या पक्ष की सुंदर और आंशिक सुंदर लड़कियों पर पड़ती है। सभी मेकअप और गलतफहमी के बोझ से लदी पड़ी हैं। इस इंतज़ार में कि कब बारात आए और वर पक्ष का एक-एक लड़का खाने से पहले, उन्हें देख गश खाकर बेहोश हो जाए।तभी ध्वनि प्रदूषण के तमाम नियमों की धज्जियां उड़ाती हुई बारात पैलेस के मुख्य द्वार तक पहुंचती है।

ये देख कि उनके स्वागत में दस-बारह लड़कियां मुख्य द्वार पर खड़ी हैं, नाच- नाच कर लगभग बेहोश हो चुके दोस्त, फिर उसी उत्साह से नाचने लगते हैं। किराए की शेरवानी में घोड़ी पर बैठा मित्र पुराने ज़माने का दरबारी कवि लग रहा है। उम्र को झुठलाती कुछ आंटियां सजावट में घोडी को सीधी टक्कर दे रही हैं और लगभग टुन्न हो चुके कुछ अंकल,जो पैरों पर चलने की स्थिति में नहीं हैं,धीरे-धीरे हवा के वेग से मैरिज हॉल में प्रवेश करते हैं।

अंदर आते ही बारात का एक बड़ा हिस्सा फूड स्टॉल्स पर धावा बोल देता है। मुख्य खाने से पहले ज़्यादातर लोग स्नैक्स की स्टॉल का रुख करते हैं। मगर पता चलता है कि वो तो बारात आने से पहले ही लड़की वालों ने निपटा दीं।

ये सुन कुछ आंटियों की बांछे खिल जाती है। उन्हें अगले दो घंटे के लिए मसाला मिल गया। वो चुन-चुन कर व्यवस्था से कीड़े निकालने लगती है। एक को मैरिज हॉल नहीं पसंद आया तो दूसरी को लड़की का लहंगा।

मगर मैं देख रहा हूं इन बुराईयों में एक सुकून भी है। ये निंदारस उन्हें उस आमरस से ज़्यादा आनंद दे रहा है, जिसका आने के बाद से वो चौथा गिलास पी रही हैं।इस बीच स्नैक्स न मिलने से मायूस लोग बिना वक्त गंवाए मुख्य खाने की तरफ लपकते हैं। एक प्लेट में सब्ज़ियां, एक में रोटी।फिर भी चेहरे पर अफसोस है कि ये प्लेट इतनी छोटी क्यों है?

कुछ का बस चलता तो घर से परात ले आते। कुछ पेंट की जेब में डाल लेते। खाते-खाते कुछ लोग बच्चों को लेकर परेशान हो रहे हैं। भीड़ की आक्रामकता देख उन्हें लगता है कि पंद्रह मिनट बाद यहां कुछ नहीं बचेगा। बच्चा कहीं दिखाई नहीं दे रहा। मगर उसे ढूंढने जाएं भी तो कैसे…कुर्सी छोड़ी तो कोई ले जाएगा। या तो बच्चा ढूंढ लें या कुर्सी बचा लें।इसी कशमकश में उन्हें डर सताता है कि वो शगुन के पैसे पूरे कर भी पाएंगे या नहीं।

उनका नियम है हर बारात में सौ का शगुन डाल कर दो सौ का खाते हैं।मगर लगता है कि आज ये कसम टूट जाएगी। तभी वहां खलबली मचती है। कुछ लोग गेट की तरफ भागते हैं। पता चलता है कि लड़के के फूफा किसी बात पर नाराज़ हो गए हैं। दरअसल, उन्होंने वेटर को पानी लाने के लिए कहा था, मगर जब दस मिनटतक पानी नहीं आया तो वो बौखला गए।

दोस्त के पापा, चाचा और बाकी रिश्तेदार फूफा के पीछे पानी ले कर गए हैं। पीछे से किसी रिश्तेदार की आवाज़ सुनाई पड़ती है…इनका तो हर शादी-ब्याह में यही नाटक होता है। झगड़े की ज़रूरी रस्म अदायगी के बाद समारोह आगे बढ़ता है। कुछ देर में फेरे शुरू हो जाते हैं।

मंडप में पंडित जी इनडायरैक्ट स्पीच में बता रहे हैं कि कन्या पत्नी बनने से पहले तुमसे आठ वचन मांगती है। अगर मंज़ूर हो तो हर वचन के बाद तथास्तु कहो। जो वचन वो बात रहे हैं उसके मुताबिक लड़के को अपना सारा पैसा, अपनी सारी अक्ल,या कहूं सारा वजूद कन्या के हवाले करना होगा।

फिर एक जगह कन्या कहती है अगर मैं कोई पाप करती हूं, तो उसका आधा हिस्सा तुम्हारे खाते में जायेगा, और तुम जो पुण्य कमाओगे उसमें आधा हिस्सा मुझे देना होगा….बोलो मंज़ूर है! मित्र आसपास नज़र दौड़ता है.. लगता है…वही दरवाज़ा ढूंढ रहा है जहां से कुछ देर पहले फूफा जी भागे थे!


नीरज बधवार - 9958506724

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