आचार्य
सञ्जीव वर्मा ‘सलिल’
डॉक्टर खुद
को खुदा समझ ले
तो मरीज़ को
राम बचाये
लेते शपथ न
उसे निभाते
रुपयों के
मुरीद बन जाते
अहंकार की
कठपुतली हैं
रोगी को
नीचा दिखलाते
करें अदेखी दर्द-आह
की
हरना पीर न
इनको भाये
डॉक्टर खुद
को खुदा समझ ले
तो मरीज़ को
राम बचाये
अस्पताल या
बूचड़खाने?
डॉक्टर हैं
धन के दीवाने
अड्डे हैं
ये यम-पाशों के
मँहगी औषधि
के परवाने
गैरजरूरी
होने पर भी
चीरा-फाड़ी
बेहद भाये
डॉक्टर खुद
को खुदा समझ ले
तो मरीज़ को
राम बचाये
शंका-भ्रम
घबराहट घेरे
कहीं नहीं
राहत के फेरे
नहीं
सांत्वना नहीं दिलासा
शाम-सवेरे
सघन अँधेरे
गोली-टॉनिक
कैप्सूल दें
आशा-दीप न
कोई जलाये
डॉक्टर खुद
को खुदा समझ ले
तो मरीज़ को
राम बचाये
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