परमजीत सिंह
परम
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ग़ज़ल किस
तरह होगी ज़िंदगी की
कही हम से
गई दिल की न जी की.
हमारी अक़्ल
पर पत्थर पडे थे,
जो हम ने
जात चुन ली आदमी की.
तुम्हारे ही
लिए पैदा हुए हम,
मुरादें कर
लो पूरी रहबरी की.
न लहजा नम न
आँखें ही भिगोईं,
बहे वो बाढ
में सूखी नदी की.
अंधेरा
क्यों चराग़ों के तले है,
ख़बर तो लो
ज़रा इस रौशनी की.
सभी प्रश्नों
के मिल जाएंगे उत्तर,
ज़रूरत है
ज़रा संजीदगी की.
चुराया था
यक़ीनन शब ने सूरज
जमानत हो गई
पर चोरनी की.
ये माना कोइ
तेरी इक न माने,
“परम”
तूने भी कब मानी किसी की.
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