सङ्कलन कर्ता – प्रमोद कुमार
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[सङ्कलन कर्ता अच्छे शेर याद रखने के
जबर्दस्त शौकीन हैं। सभी शायरों के नाम उन्हें याद नहीं हैं, लिहाज़ा शोरा हजरात के नाम
नहीं दिये जा रहे हैं]
बिछड़ते वक़्त मुड़कर देख लेता
मोहब्बत के लिए इतना बहुत था
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मोहब्बत की है
इक ऐसा वक़्त भी आता है चाँदनी शब मे
मेरा दिमाग मेरा दिल कहीं नहीं होता
तेरा ख्याल कुछ ऐसा निखर के आता है
तेरा विसाल भी इतना हंसी नहीं होता
उनका ख़याल उनकी तलब उनकी आरजू
जिस दिल मे हो वो मांगे किसी मेहरबाँ से क्या
कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक दिल
को गम होगा
मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज कम होगा
तुझे पाने की कोशिश मे कुछ
इतना खो चुका हूँ मै
कि तू मिल भी अगर जाए तो
अब मिलने का गम होगा
या इलाही तू कभी वो दिन न दिखलाना मुझे
मै अज़ीज़ों से कहूँ - क्या तुमने पहचाना मुझे
उनके कदमों पे न रख सर कि ये है बेअदबी .
पाँव नाजुक तो सर आंखो पे लिए जाते हैं
अब तो दुश्मन के इरादो पे भी प्यार आता है
तेरी उलफत ने मोहब्बत मेरी आदत कर दी
हम तो बिक जाते हैं उन अहले करम के हाथों
करके एहसान भी जो नीची नजर रखते हैं
मै रोना चाहता हूँ खूब रोना चाहता हूँ मै
फिर उसके बाद गहरी नींद सोना चाहता हूँ मै
अगर वो पूछ लें हमसे - तुम्हें
किस बात का ग़म है
तो फिर किस बात का ग़म है - अगर
वो पूछ लें हमसे
वो जिनके घर मे दिया तक नहीं जलाने को
ये चाँद सिर्फ उन्हीं के लिए निकलता है
वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से
मै एतबार न करता तो भला क्या करता
मै बोलता गया हूँ, वो सुनता रहा खामोश
ऐसे भी मेरी हार हुई है कभी कभी
वो सजदा क्या - रहे एहसास जिसमे
सर उठाने का
इबादत और बक़ैदे-होश - तौहीने इबादत है
उसने मुसका के हाल पूछा है
तंज़ करने मे भी सलीक़ा है
बढ़ा दे जुर्र्तें रिंदाना दस्ते शौक बढ़ा
नकाब ख़ुद नहीं उठते उठाए जाते हैं
इक ऐसे बज़्म ए चरागां का नाम है दुनिया
जहां चराग़ नहीं दिल जलाए जाते हैं
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