उर्मिला
माधव
आँधियाँ चल
रही हैं लहरा कर
मैं भी रख
आऊं इक दिया जा कर
हर तरफ
रौशनी का आलम है,
तीरगी क्या
रहेगी अब आ कर,
इन चरागों
में कुछ न कुछ तो है,
लौट जाती है
अब हवा आकर,
अब वहां
जाने का ख्याल न कर,
दिल जहाँ
टूटता है जा-जा कर,
मुझको कंदील
सिर्फ़ काफ़ी है,
इसमें रुक जाये है हवा आकर
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