30 नवंबर 2014

गुजराती गजल – नवीन सी. चतुर्वेदी

गुजराती गजल – नवीन सी. चतुर्वेदी

કહેવા દે શું કામ રોકે છે મને
તારા સમ તું વ્હાલી લાગે છે મને

આવ કૂદકો મારી ને બૂડાઈ જા
તારી આંખો ઍજ બોલે છે મને

તારા થી કોણે કહ્યું, તનહાઈ માં -
હુસ્ન નો પડ્કાર ભાવે છે મને

મારા થી અભિમાન લઈ તારૂં હૃદય
પ્રેમ ના વરસાદ ધીરે છે મને


देवनागरी लिपि में :

कहेवा दे शुं काम रोके छे मने
तारा सम तुं व्हाली लागे छे मने

आव कुदको मारी ने बूडाई जा
तारी आँखो एज बोले छे मने

तारा थी कोणे कहयु – तनहाई मां –
हुस्न नुं पडकार भावे छे मने

मारा थी अभिमान लई, तारूँ हृदय
प्रेम ना वरसाद धीरे छे मने 

भावार्थ :

कहने दे क्यों रोकती है मुझे
तेरी कसम तू प्यारी लगती है मुझे

आ इन में गोता मार कर ड़ूब जा
तेरी आँखें यही कहती हैं मुझे

तुझ से किस ने कहा, तनहाई में
हुस्न की चुनौती भाती है मुझे

मुझसे अभिमान ले कर, तेरा हृदय
प्रेम की बारिशें उधार देता है मुझे 


છે તે દેખાતુ નથી
દેખાય છે તે છેજ ક્યાં
આવી ઘટનાઓ મુસલસલ
થાય છે હર દૌર માં

આધુનિકતા ના વકીલો કદી કહતા નથી
કેટલા ગામો ગુમાવ્યા શહર ના વિસ્તાર માં

સદીઓ વીતી શોધતા,
થાકી ગયો, પણ ના જડી -
મારી ઓણખ
આજ પણ વખણાય છે મૂઝ ગામ માં

હે પ્રભો કેવી રીતે ભૂણ મારા થી થયી
બે-કફન રુખ્સત કર્યા છે ખેતણો કાપૂસ નાં

સ્વપ્ન બીજા પણ ઘણા'તા
પણ કહું તો શું 'નવીન'
આખ્ખી ની આખ્ખી ઉમ્મર
વીતી છે ઍકજ ખ્વાબ માં
देवनागरी लिपि में :
छे ते देखातु नथी, देखाय छे ते छे ज क्यां
आवी घटनाओ मुसलसल थाय छे हर दौर मां

आधुनिकता ना वकीलो ए कदी कहता नथी
केटला गामो गुमाव्या शहर ना विस्तार मां

सदीओ वीती शोधता, थाकी गयो, पण ना जड़ी
मारी ओणख -
आज पण वखणाय छे मुझ गाम मां

हे प्रभो केवी रीते आ भूण मारा थी थयी
बेकफ़न रुख़सत कर्या छे खेतड़ो कापूस नां

स्वप्न बीजा पण घणाता,
पण कहूँ तो शुं नवीन
आख्खी नी आख्खी उम्मर
वीती छे एकज ख़्वाब मां

भावार्थ :
जो है वो दिखता नहीं है
और जो दिखता है वो है ही कहाँ
ऐसी घटनाएँ तो लगातार हर दौर में होती हैं

आधुनिकता के वकील कभी ये नहीं बताते
कि शहर के विस्तार में कितने गाँव गँवाने पड़े

ढूँढते-ढूँढते सदियाँ बीत गईं,
थक गया हूँ, मगर मिली नहीं
मेरी पहिचान का बखान
आज भी मेरे गाम में होता है

हे प्रभो किस तरह मुझ से यह भूल हो गयी
मैं ने कपास के खेतों को
बिना कफ़न रुख़सत कर दिया

स्वप्न और भी थे पर क्या कहूँ नवीन

सारी की सारी उम्र एक ही ख़्वाब में बीत गयी  


[शायर की माँ-बोली गुजराती नहीं है]

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