मैं वज्ह पूछ ही न सका बेवफ़ाई की - नवीन

बोनसाई / Bonsai Tree

मैं वज्ह पूछ ही न सका बेवफ़ाई की
थी रस्म आज उस के यहाँ मुँह-दिखाई की

क़ातिल बता रहा है नज़र है क़ुसूरवार
किस वासते है उस को ज़ुरूरत सफ़ाई की

हर ज़ख्म भर चुका है मुहब्बत की चोट का
मिटती नहीं है पीर मगर जग-हँसाई की

पहले तो दिल ने आँखों को सपने दिखाये थे
फिर हसरतों ने दिल की मुसीबत सवाई की

बहती हवाओ तुमसे गुजारिश है बस यही
इक बार फिर सुना दो बँसुरिया कन्हाई की

छोटे से एक पौधे का रुतबा दरख़्त सा
इनसाँ की ज़िन्दगी है कथा बोनसाई की

इल्मोहुनर को ले के वो जायें भी तो कहाँ
इस दौर में है माँग पढ़ाई-लिखाई की

उन को तो बस कमाना है तस्वीर बेच कर
तस्वीर हो फ़क़ीर की या आतताई की

मेरे बयान दौर की मुश्किल का हैं सबब
इनमें तलाशिये न झलक पंडिताई की

मखमल का बिस्तरा भी लगे है अज़ीब सा
जब याद आये गाँव-गली-चारपाई की

: नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ
मफ़ऊलु फ़ाएलातु मुफ़ाईलु फ़ाएलुन

२२१ २१२१ १२२१ २१२

गर चाहते हो सर पे तना आसमाँ रहे- नवीन

गर चाहते हो सर पे तना आसमाँ रहे।
रब की इबादतों का सलीक़ा जवाँ रहे॥


अब के उठें जो हाथ लबों पर हो ये दुआ।
मालिक! तमाम ख़ल्क़1 में अम्नो-अमाँ2 रहे॥


इस के सिवा कुछ और नहीं मेरी आरज़ू।
हर आदमी ख़ुशी से रहे जब - जहाँ रहे॥


जन्नत से नीचे झाँका तो अज़दाद3 ने कहा।
हम-तुम बँधे थे जिन से वो रिश्ते कहाँ रहे॥


आओ कि उस ज़मीन को सजदा करें 'नवीन' 
ईश्वर के सारे अन्श उतर कर जहाँ रहे॥


मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु फाएलुन
221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ


1 संसार 2 सुख-चैन 3 पूर्वज 

दोहा ग़ज़ल - कारण झगड़े का बनी, बस इतनी सी बात - नवीन


खिलता हुआ गुलाब / Opening Lotus Flower
कारण झगड़े का बनी, बस इतनी सी बात
हमने माँगी थी मदद, उसने दी ख़ैरात

किया चाँद ने वो ग़ज़ब, पल भर मुझे निहार
दिल दरिया को दे गया, लहरों की सौगात

कहाँ सभी के सामने, कली बने है फूल
तनहाई में बोलना, उस से दिल की बात

सर पर साया चाहिये ? मेरा कहना मान
हंसा को कागा बता, और धूप को रात

आँखों को तकलीफ़ दे, डाल अक़्ल पर ज़ोर
हरदम ही क्या पूछना, मौसम के हालात

:- नवीन सी. चतुर्वेदी 

दोहा ग़ज़ल के बारे में सुना था। कुछ एक दोहा ग़ज़लें पढ़ी भी थीं। अग्रजों से बात भी की। दो मत सामने आये। पहला मत - हर दो पंक्तियाँ बिलकुल दोहे के समान ही हों। यदि ऐसा करें तो फिर ग़ज़ल कहाँ हुई, वो तो दोहे ही रहे। दूसरा मत ये कि शिल्प दोहे का लें और ग़ज़ल के माफ़िक़ पहले दोहे [मतले] के बाद के ऊला-सानी टाइप दोहे [शेर] कहे जाएँ। पहले मत वालों को पूर्ण सम्मान परन्तु मुझे दूसरा मत अधिक उचित लगा। तो मेरा यह पहला प्रयास दोहा ग़ज़ल के माध्यम से आप के समक्ष है, आप की राय का इंतज़ार रहेगा। 



सभी मित्रों को ईद की हार्दिक शुभकामनायें............................ 

स्वाधीनता दिवस गीत - तब आयी ये पन्द्रह अगस्त

 
जो सदियों से था क्षोभ ग्रस्त । 
अत्याचारों से दुखी, त्रस्त । 
वह आम आदमी हुआ व्यस्त । 
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।। 

जब जुड़े जलद सम वरदहस्त । 
तारे अनिष्ट के हुये अस्त । 
चल पड़े साथ मिल सर परस्त । 
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।। 

मतभेदों को कर के निरस्त । 
घातक मनसूबे किये ध्वस्त । 
जब हुआ क्रान्ति का पथ प्रशस्त । 
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।। 

 सब चेहरे दिखने लगे मस्त । 
 परचम लहराने लगे हस्त । 
 जब जुड़े वीर बाँके समस्त । 
 तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।। 

घर घर से होने लगी गश्त । 
चुन चुन मारे फिरका परस्त । 
जब अंग्रेजों को दी शिकस्त । 
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।। 

है प्रगतिशील हर एक दस्त । 
 है हिन्द विश्व से फिर वबस्त । 
 हैं नीति हमारी सुविश्वस्त । 
 बस याद रहे पन्द्रह अगस्त ।। 

 बस याद रहे पन्द्रह अगस्त ।। 
 बस याद रहे पन्द्रह अगस्त ।। 

नवीन सी. चतुर्वेदी 

मेरा श्याम है मस्ताना - नवीन


माखन चोर कृष्ण / Makhan Chor Krishn
जमुना के तट नटखट मो सों अटकत
झटकत मटकत गैल अटकावै है

मैं जो कहों गुप-चुप माखन तू खाय लै तौ
माखन न खावै ग्वाल - बालन बुलावै है

ग्वाल-बाल सङ्ग लावै गगरी छुड़ावै फिर
खाय औ खवाय, ब्रज - रज में मिलावै है

तीन लोक स्वामी जा के ताईं वा के ताईं होय
मेरे ताईं चोर - मेरौ माखन चुरावै है


कृष्ण विराट स्वरूप / Krishn Virat Swarup

लल्ला बन जाय और हल्ला हू मचावै फिर
खेलत-खेलत चौका बीच घुस आवै है

डाँट औ डपट मो सों घर के करावै काम
ननदी बनै तौ कबू सास बन जावै है

बन कें देवर मोहि दिखावै तेवर कबू
बन कें ससुर मो पै रौब हू जमावै है

ग्वाला बन गैया दुहै, गैया बन दूध देय
दूध बन मेरे घट भीतर समावै है 


चित चोर कृष्ण / Chit Chor Krishn

कोई चोर आता है तो कपड़े चुराये और
कोई-कोई चोर अन्न-धन को चुराता है

ज़र को चुराये, कोई ज़मीन चुराये, कोई
हक़ को चुरा के बड़ा कष्ट पहुँचाता है

दुनिया ने देखे कई तरह के चोर, किन्तु
चोर ये अनोखा मेरे दिल को लुभाता है

माखन चुराने के बहाने आये श्याम और
मन को चुरा के मालामाल कर जाता है



माना कि ज़माना तेरे रूप का दीवाना, पर
मैं ने तो ये जाना – श्याम – चोरी तेरा काम है

निठुर, निगोड़े, कपटी, छली, लबार, ढीठ
दिलों को दुखाना तेरा काम सुबोशाम है

जाने कैसे नाथा होगा ज़हरीला नाग - तू ने -
कपड़े चुराये – तेरा चर्चा ये आम है

यशोदा का प्यारा होगा, नन्द का दुलारा होगा
राधा से तू हारा – रणछोड़ तेरा नाम है 



ये छन्द इस मुखड़े और अन्तरे के साथ गाये जाते हैं

मुखड़ा:
क्या रूप सलौना है जग जिस का है दीवाना
कहीं नज़र न लग जाये मेरा श्याम है मस्ताना

अन्तरा:
है चोर बड़ा छलिया - कपटी है काला है
झूठा भी है लेकिन - सच्चा दिलवाला है 

[यहाँ बीच में छन्द गाये जाते हैं]

कोई चोर अगर ऐसा - देखा हो तो बतलाना
कहीं नज़र न लग जाये मेरा श्याम है मस्ताना

सभी साहित्य रसिकों को कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाइयाँ


: नवीन सी. चतुर्वेदी

मरमरी बाँहों पे इस ख़ातिर फ़िदा रहता हूँ मैं - नवीन

मरमरी बाँहों पे इस ख़ातिर फ़िदा रहता हूँ मैं
इन के घेरे में गुलाबों सा खिला रहता हूँ मैं

फैलने के बावजूद उभरा हुआ रहता हूँ मैं
नैन-का-जल हूँ सो आँखों में सजा रहता हूँ मैं

तेरे दिल में रहने से मुझको नहीं कोई गुरेज़
गर तू मेरे हक़ में कर दे फ़ैसला – रहता हूँ मैं

देख ले सब कुछ भुला कर आज़ भी हूँ तेरे साथ 
तेरी यादों की सलीबों पर टँगा रहता हूँ मैं

उन पलों में जब सिमट कर चित्र बन जाती है वो
फ्रेम बन कर उस की हर जानिब जड़ा रहता हूँ मैं

उस की हर हसरत बजा है मेरी हर ख़्वाहिश फ़िजूल
ये हवस है या मुहब्बत सोचता रहता हूँ मैं

क्यूँ न मेरे जैसे जुगनू से ख़फ़ा हो माहताब
उस की प्यारी चाँदनी को छेड़ता रहता हूँ


आने वाला वक़्त ही ये तय करेगा दोसतो
मुद्दआ बनता हूँ या फिर मसअला रहता हूँ मैं
:- नवीन सी. चतुर्वेदी

अजनबी हरगिज़ न थे हम शहर में - नवीन

अजनबी हरगिज़ न थे हम शहर में। 
वक़्त ने कुछ देर से जाना हमें।। 

उलझनों से वासता तक था नहीं। 
क्या मज़े थे माँ तुम्हारी गोद में।। 

चाशनी हो जिस की बातों में हुज़ूर। 
वो ही पाता है जगह बाज़ार में।। 

अब हिफ़ाज़त का हुनर सिखलाएँगी। 
मछलियाँ जो फँस न पायीं जाल में।।

मैं ने ही धक्का दिया होगा मुझे। 
तीसरा था ही न कोई रेस  में।। 

:- नवीन सी. चतुर्वेदी

बहरे रमल मुसद्दस महजूफ
फ़ाएलातुन फ़ाएलातुन फ़ाएलुन

2122 2122 212

बादशाहों का फ़क़ीरों से बड़ा रुतबा न था - कृष्ण बिहारी 'नूर'


कृष्ण बिहारी 'नूर'


बादशाहों का फ़क़ीरों से बड़ा रुतबा न था
उस समय धर्म और सियासत में कोई रिश्ता न था

शख़्स मामूली वो लगता था मगर ऐसा न था
सारी दुनिया जेब में थी हाथ में पैसा न था

प्यार मिलता है प्यार देने से - तर्ज़ लखनवी


तर्ज़ लखनवी


जाने जाने की बात करते हो
क्यूँ सताने की बात करते हो

प्यार मिलता है प्यार देने से
किस ज़माने की बात करते हो

ग्राम सुधार - यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

सुघरे मकान होंय, चहुंधा उद्यान होंय,
सब ही समान होंय, ध्यान होंय काम में।

 छोटे परिवार होंय, ब्रिच्छ हू हज़ार होंय,
होंय व्हाँ बजार, मिलें - वस्तु सत्य दाम में।

कूप होंय, ताल होंय, सुंदर चौपाल होंय,
बाल हू खुसाल होंय, खेलें केलि धाम में।

'प्रीतम' अपार अन्न-धन के भण्डार होंय,
होंय यों सुधार यथा सीघ्र गाम-गाम में।।
:- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
['राष्ट्र हित शतक' से साभार]

इस क़दर बदलेगी दुनिया हमको अंदाज़ा न था - सैयद रियाज़ रहीम


सैयद रियाज़ रहीम



सोचता कोई नहीं है हाँ ही हाँ कहते हैं सब
चाहे कैसी भी ज़मीं हो आसमाँ कहते हैं सब

इस क़दर बदलेगी दुनिया हमको अंदाज़ा न था
जो हक़ीक़त है उसे भी दासताँ कहते हैं सब

खिल उठा है बहार का मौसम - राज़दान 'राज़'


राज़दान 'राज़'


आँखों में कोई तो नदी होगी
बर्फ़ दिल में पिघल रही होगी

ऊँचे पेड़ों पे आशियाना था
पहले बिजली वहीं गिरी होगी

लघु उद्योगन तें गरीबन सँभार होत - यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

लघु उद्योगन तें गरीबन सँभार होत
प्यार होत समृद्धि औ संपति के पाये ते

छोटे परिवारमें दुलार होत संतति कौ
सार औ सँभार होत दो ही सुत* जाये ते

सिच्छा के प्रचार ही ते पावन विचार होत
कोऊ ना लाचार होत बुद्धि बिकसाये ते

'प्रीतम' अपार अन्न-धन कौ भण्डार होत
सुख कौ अधार होत खेत हरियाये ते

*यहाँ 'दो सुत' का अभिप्राय 'दो बच्चों' से है 

:- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
['राष्ट्र हित शतक' से साभार]

पहले तो इज़हार टाला जायेगा - नवीन

पहले तो इज़हार  टाला जायेगा 
फिर बहानों को खँगाला जायेगा।१।

चैन लूटा, दिल भी घायल कर दिया।
और क्या अब दम निकाला जायेगा।२।

रो रहे हो क्यों, तुम्हें बोला तो था।
आँख से काजल निकाला जायेगा।३।

हम भला इन मुश्किलों से क्यों डरें।
जैसे भी होगा सँभाला जायेगा।४। 

मूँद कर आँखें करो रब दा ख़याल।
नाभि तक उस का उजाला जायेगा।५।

काश अगली बार कुछ इंसाफ़ हो।
अब के बस मुद्दा उछाला जायेगा।६।

कर्ज़ के बिन कुछ भी हो पाता नहीं ।
क्या वतन ऐसे सँभाला जायेगा।७।

तुमसे गर सँभले नहीं तो छोड़ दो ।
जैसे भी होगा सँभाला जायेगा  ।८।

बहरे रमल मुसद्दस महजूफ
फ़ाएलातुन  फ़ाएलातुन  फ़ाएलुन  

२१२२ २१२२ २१२

चंद अश'आर - अनवारे इसलाम


अनवारे इस्लाम


मैं धरती पर मुहब्बत चाहता हूँ
हवाओं पे मेरा पैगाम लिख दे 
*
कैसे बच्चों को खेलते देखूँ
दिन तो रस्ते में डूब जाता है
*
वो अपनी माँ को समझाने लगी है
मेरी बिटिया सयानी हो रही है
*
पत्थरों का नगर काँच का "जिस्म" है
ले के "माँ की अमानत" मैं जाऊँ कहाँ
*
 मेरा वजूद बाप की शफ़क़त [प्यार] से ढँक गया
जब भी किसी बुजुर्ग ने बेटा कहा मुझे
*
चारों तरफ़ बबूल हैं सरसों के खेत में
किसकी ये साजिशें हैं कोई सोचता नहीं
*
नई दुनिया बसाई जा रही है
तबाही भी मचाई जा रही है
*
झुकाया जा रहा है आस्माँ को
ज़मीं सर पर उठाई जा रही है
*
किसी के हाथ मिट्टी से सने हैं
कोई ख़ुशबू से ख़ुशबू धो रहा है 
*
देख कर तुमको याद आता है 
हमने क्या खो दिया जवानी में 
*
बारिशों में हो साथ कोई तो
लुत्फ़ आता है भीग जाने में
*
ख़ुदा मुझको वहाँ जन्नत ही देगा
जहन्नुम तो यहीं पर दे दिया है 
*
हमने तमाम उम्र अँधेरों में काट दी
लेकिन किसी चिराग़ से सौदा नहीं किया
*
सूखा पड़ा तो सूख गई फ़स्ल धान की
सूरज की धूप पी गयी मेहनत किसान की
*
वो इस तरह से भी तारीकियाँ बढ़ा देगा
चिराग़ जितने हैं रौशन उन्हें बुझा देगा 
*
 हवा के साथ चिराग़ों ने दोसती कर ली
अज़ीब लोग हैं घबरा के ख़ुदकुशी कर ली
*
हम दिमाग़ों में बस गये होते
दिल की बातों में गर नहीं आते
*
है ख़तरा बस्तियों के डूबने का
समन्दर पैर फैलाने लगा है
*
तुमको मिला जो हुस्न, मुझे शाइरी मिली
दौनों पे रहमतें मिरे परवरदिगार की
 *
ख़्वाबों में मेरे आज तक उतरी नहीं परी
दादी ने जो सुनाये वो क़िस्से फ़जूल थे
*

 'मिजाज़ कैसा है' से उद्धृत

अनवारे इस्लाम
सम्पादक - सुखनवर पत्रिका
C-16, सम्राट कौलोनी,
अशोका गार्डन,
भोपाल - 462023
मोबाइल - +91 98 93 66  3536
ईमेल - sukhanwar12@gmail.com

एकता अधार राष्ट्र-भाषा एक भारती - यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'



फल की सफलता में मूल ही अधार होत
मूल कौ अधार बीज, बीज धरा धारती

धरा उरबरा हेतु नीर है अधार सार
नीर की अधार, नभ - घटा वारि ढारती

'प्रीतम' विवेक, ता की - बुद्धि त्यों अधार रही
बुद्धि की अधार सिच्छा - नेकता उभारती

नेकता अधार प्यार, एकता की माल गुहै
एकता अधार राष्ट्र - भाषा एक भारती 


:- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

श्री राधा आराध्य सुगम गति आराधन की - यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'

राधा रानी और तुलसी पूजा







श्री राधा आराध्य सुगम गति आराधन की।
जो अति अगम अपार न है मति जहँ निगमन की।
ज्ञान मान की खान ध्यान धारा भगतन की।
प्रिय 'प्रीतम' की प्रान प्रमान पतित पावन की।।