ग़ज़ल - मेरे फ़र्दा में बड़ी दूर तलक बनती है - नवीन जोशी नवा



मेरे फ़र्दा में बड़ी दूर तलक बनती है

मेरी बीनाई से कोहरे की सड़क बनती है 

 

पहले मिट्टी से बनाती है पसीना मेहनत

फिर पसीने से ही मिट्टी में महक बनती है

 

मो'जिज़ा हूँ मैं मुझे धूप में रख कर तो देख

मुझ से गुज़रें तो शु''ओं से धनक बनती है

 

तेरी यादों से ही चलता है पता धड़कन का

तेरी यादों से ही धड़कन में कसक बनती है

 

चाहे सच्ची हो या झूटी कोई उम्मीद बना

इसी उम्मीद से जीने की ललक बनती है

 

मेरे चेहरे से ही बनता है तेरा चेहरा गर 

मेरे शीशे में तिरी एक झलक बनती है 

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