फल की सफलता में मूल ही अधार होत
मूल कौ अधार बीज, बीज धरा धारती
धरा उरबरा हेतु नीर है अधार सार
नीर की अधार, नभ - घटा वारि ढारती
'प्रीतम' विवेक, ता की - बुद्धि त्यों अधार रही
बुद्धि की अधार सिच्छा - नेकता उभारती
नेकता अधार प्यार, एकता की माल गुहै
एकता अधार राष्ट्र - भाषा एक भारती
:- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
बहुत सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
एक बार पढ़ा तो लगा कुछ समझीं नहीं...फिर पढ़ा तो आनंद आया.....
सादर
वाह,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति,,,बेहतरीन रचना,,,,,
MY RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: विचार,,,,
समझने के लिए दो-तीन बार पढ़ना पड़ा..
जवाब देंहटाएंसमझ में आई तो बहुत अच्छी लगी ...
घनाक्षरी की बेहतरीन रचना !!...आभार!
आपकी पोस्ट कल 14/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा - 902 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क
बहुत सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंमगर यह तख़्ती तो हमने ही बनाई थी।
आपने इसका उपयोग किया बहुत अच्छा लगा।
बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत ही बढ़िया धनाक्षरी....
जवाब देंहटाएंसादर आभार.
जय हो....
जवाब देंहटाएंbahut hi achha chnd hai
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