सुघरे मकान होंय, चहुंधा उद्यान होंय,
सब ही समान होंय, ध्यान होंय काम में।
छोटे परिवार होंय, ब्रिच्छ हू हज़ार होंय,
होंय व्हाँ बजार, मिलें - वस्तु सत्य दाम में।
कूप होंय, ताल होंय, सुंदर चौपाल होंय,
बाल हू खुसाल होंय, खेलें केलि धाम में।
'प्रीतम' अपार अन्न-धन के भण्डार होंय,
होंय यों सुधार यथा सीघ्र गाम-गाम में।।
:- यमुना प्रसाद चतुर्वेदी 'प्रीतम'
['राष्ट्र हित शतक' से साभार]
Vaah ! aisa ho to kitna achchaa ho !!
जवाब देंहटाएंaadarniy PREETAM baba ko saadar naman!