सैयद रियाज़ रहीम |
सोचता कोई नहीं है हाँ ही हाँ कहते हैं सब
चाहे कैसी भी ज़मीं हो आसमाँ कहते हैं सब
इस क़दर बदलेगी दुनिया हमको अंदाज़ा न था
जो हक़ीक़त है उसे भी दासताँ कहते हैं सब
मैं अकेला कह रहा हूँ धूप कितनी तेज़ है
एक सुर में धूप को ही सायबाँ कहते हैं सब
मसलहत है या सियासत या हैं कुछ मज़बूरियाँ
ज़ुल्म जो ढाता है उस को मेहरबाँ कहते हैं सब
एक दो होते हैं - शब को शब - जो कहते हैं 'रियाज़'
सच का दावा सबको है, लेकिन - कहाँ कहते हैं सब
:- सैयद रियाज़ रहीम
9930632838
['पूछना है तुम से इतना' से साभार]
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