जो सदियों से था क्षोभ ग्रस्त ।
अत्याचारों से दुखी, त्रस्त ।
वह आम आदमी हुआ व्यस्त ।
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।।
जब जुड़े जलद सम वरदहस्त ।
तारे अनिष्ट के हुये अस्त ।
चल पड़े साथ मिल सर परस्त ।
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।।
मतभेदों को कर के निरस्त ।
घातक मनसूबे किये ध्वस्त ।
जब हुआ क्रान्ति का पथ प्रशस्त ।
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।।
सब चेहरे दिखने लगे मस्त ।
परचम लहराने लगे हस्त ।
जब जुड़े वीर बाँके समस्त ।
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।।
घर घर से होने लगी गश्त ।
चुन चुन मारे फिरका परस्त ।
जब अंग्रेजों को दी शिकस्त ।
तब आयी यह पन्द्रह अगस्त ।।
है प्रगतिशील हर एक दस्त ।
है हिन्द विश्व से फिर वबस्त ।
हैं नीति हमारी सुविश्वस्त ।
बस याद रहे पन्द्रह अगस्त ।।
बस याद रहे पन्द्रह अगस्त ।।
बस याद रहे पन्द्रह अगस्त ।।
नवीन सी. चतुर्वेदी
जवाब देंहटाएंजब हुआ क्रान्ति का पथ प्रशस्त
मतभेद हुए सारे निरस्त
घातक मनसूबे हुए ध्वस्त
तब आयी ये पन्द्रह अगस्त
क्या बात है नवीन जी ,, बहुत बढ़िया कविता है रवानी शिल्प और शब्दों का चयन सभी कुछ प्रशंसनीय
बधाई स्वीकार करें
.
जवाब देंहटाएंकमाल ! कमाल !! कमाल !!!
नवीन जी !
बहुत अच्छा लिखा है आपने !
लीक से हट कर … अपनी अलग पहचान के अनुरूप रचना !
…आपकी पुरानी पोस्ट्स भी पढ़ी हैं
उन पर फिर आ रहा हूं … … …
बहुत बहुत मंगलकामनाएं !
नवीन जी !
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लिखा है आपने !
Pilu
तिथि पन्द्रह अगस्त --स्वतंत्र भारत के इतिहास में एक विशुद्ध तिथि-- के हो जाने की कई एक दशा का रोचक प्रस्तुतिकरण हुआ है.
जवाब देंहटाएंहार्दिक बधाई, नवीन भाई.
--सौरभ पाण्डेय, नैनी, इलाहाबाद (उप्र)
सटीक शब्द रचना ...प्रभावी कविता ...
जवाब देंहटाएंसटीक शब्द रचना ...प्रभावी कविता ...
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