तर्ज़ लखनवी |
जाने जाने की बात करते हो
क्यूँ सताने की बात करते हो
प्यार मिलता है प्यार देने से
किस ज़माने की बात करते हो
छीन कर मुस्कुराहटें ख़ुद ही
मुस्कुराने की बात करते हो
बिजलियाँ रख के आशियाने में
घर बनाने की बात करते हो
जान-ओ-दिल ले लिये मगर फिर भी
आज़माने की बात करते हो
आई मंज़िल तो फिर पलट आया
किस दीवाने की बात करते हो
तुम भी ऐ 'तर्ज़' खूब हो दिल से
दिल लगाने की बात करते हो
:- गणेश बिहारी 'तर्ज़' उर्फ़ तर्ज़ लखनवी
['हिना बन गई ग़ज़ल' से साभार]
बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति |
जवाब देंहटाएंआशा
मनोभाव का सुंदर सम्प्रेषण,,,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
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