कविता - रहे रेडियो के हम श्रोता, बड़े प्रेम से सुनते थे - अटल राम चतुर्वेदी

 


रहे रेडियो के हम श्रोताबड़े प्रेम से सुनते थे 

फिल्मी गीतों को सुन-सुन कर, स्वर्णिम सपने बुनते थे 

रहे रेडियो के हम श्रोता, बड़े प्रेम से सुनते थे

 

सबसे पहले सुमधुर धुन जो, मन आनंदित करती थी

आज सुनेंगे किससे, क्या हम, वाणी मन को हरती थी

भजन, आरती प्रभु का वंदन, मन को खुश कर जाता था

सही मायने में तो इससे, पूरा दिन बन जाता था

 

समाचार सब जगह-जगह के, खेती की भी बातें थीं

हाल रहेगा क्या मौसम का, सुंदर ये सौगातें थीं

चित्रपट संगीत सुना फिर फरमाइश के गाने थे

भूले-बिसरे गीत पुराने, जिनके हम दीवाने थे

 

हवामहल का नशा अलग था और अलग नवरंग रहा

'अटल' रेडिओ छूटा जबसे, दिखे रंग में भंग रहा

श्रोता तो हम अब भी हैं पर, इससे थोड़ी दूरी है

वैकल्पिक साधन हैं ढेरों, यह अपनी मजबूरी है


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