गर चाहते हो सर पे तना आसमाँ
रहे।
रब की इबादतों का सलीक़ा जवाँ रहे॥
अब के उठें जो हाथ लबों पर हो ये दुआ।
मालिक! तमाम ख़ल्क़1 में अम्नो-अमाँ2 रहे॥
इस के सिवा कुछ और नहीं मेरी आरज़ू।
हर आदमी ख़ुशी से रहे जब - जहाँ रहे॥
जन्नत से नीचे झाँका तो अज़दाद3 ने कहा।
हम-तुम बँधे थे जिन से वो रिश्ते कहाँ रहे॥
आओ कि उस ज़मीन को सजदा करें 'नवीन'।
ईश्वर के सारे अन्श उतर कर जहाँ रहे॥
रब की इबादतों का सलीक़ा जवाँ रहे॥
अब के उठें जो हाथ लबों पर हो ये दुआ।
मालिक! तमाम ख़ल्क़1 में अम्नो-अमाँ2 रहे॥
इस के सिवा कुछ और नहीं मेरी आरज़ू।
हर आदमी ख़ुशी से रहे जब - जहाँ रहे॥
जन्नत से नीचे झाँका तो अज़दाद3 ने कहा।
हम-तुम बँधे थे जिन से वो रिश्ते कहाँ रहे॥
आओ कि उस ज़मीन को सजदा करें 'नवीन'।
ईश्वर के सारे अन्श उतर कर जहाँ रहे॥
मफ़ऊलु फाएलातु मुफ़ाईलु
फाएलुन
221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ
221 2121 1221 212
बहरे मुजारे मुसमन अखरब मकफूफ़ महजूफ
1 संसार 2 सुख-चैन 3 पूर्वज
सुन्दर ग़ज़ल.....हुश्ने मतला का हुश्न भी है ....
जवाब देंहटाएं